Saturday, 15 August 2020

स्वाध्याय का महत्व जैन साधना में -- स्वाध्याय दिवस - उत्तम जैन ( विद्रोही )

   


                                               Study Of The Self =  स्वाध्याय 

                                                    लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )   
         शब्द से अर्थ की ओर तथा अर्थ से भाव की ओर बढ़ना ही स्वाध्याय का मूल लक्ष्य  है 

स्वाध्याय का शाब्दिक अर्थ है- 'स्वयं का अध्ययन करना'। यह एक वृहद संकल्पना है जिसके अनेक अर्थ होते हैं। विभिन्न हिन्दू दर्शनों में स्वाध्याय एक 'नियम' है। स्वाध्याय का अर्थ 'स्वयं अध्ययन करना' तथा वेद एवं अन्य साहित्यों का पाठ करना भी है। जीवन-निर्माण और सुधार संबंधी पुस्तकों का पढ़ना, परमात्मा और मुक्ति की ओर ले जाने वाले ग्रंथों का अध्ययन, श्रवण, मनन, चिंतन आदि करना स्वाध्याय कहलाता है। आत्मचिंतन का नाम भी स्वाध्याय है। अपने बारे में जानना और अपने दोषों को देखना भी स्वाध्याय है। स्वाध्याय के बल से अनेक महापुरुषों के जीवन बदल गए हैं। शुद्ध, पवित्र और सुखी जीवन जीने के लिए सत्संग और स्वाध्याय दोनों आधार स्तंभ हैं। सत्संग से ही मनुष्य के अंदर स्वाध्याय की भावना जाग्रत होती है। स्वाध्याय का जीवन निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है। स्वाध्याय से व्यक्ति का जीवन, व्यवहार, सोच और स्वभाव बदलने लगता है।
प्राचीनकाल से ही भारत में स्वाध्याय की परम्परा चली आ रही है। स्वाध्याय शब्द की व्युत्पत्ति स्व अधि आया के रूप में हुई है जिसका अर्थ है अपने आपको अपनी आत्मा का अध्ययन व अपने आत्मस्वरूप का बोध। ऐसा होने में शास्त्र अवलम्बन है अत: शास्त्राध्ययन भी इसका आशय है। प्राचीन काल में भारत में गुरुकुलों में ज्ञान प्रदान किया जाता था। उस समय विद्यार्थी की शिक्षा समाप्त होने पर आचार्य शिष्य को विदा करने के समय कहते थे, 'वत्स!' तुमने अब अपना अध्ययन सम्पूर्ण किया। अब तुम जीवन के क्षेत्र में इस सीखे हुए ज्ञान को चरितार्थ करने के लिये प्रवेश कर रहे हो। मैं तुम्हारी सफलता की कामना करता हूं। तुम जीवन में तीन बातों को हमेशा याद रखना  अर्थात् तुम जीवन में सत्य का अनुसरण करना, धर्म का आचरण करना और स्वाध्याय में कभी प्रमाद मत करना। उस समय स्वाध्याय करने पर बहुत जोर दिया जाता था 
स्वाध्याय क्या है ? 
हम साहित्य को  दो श्रेणियों में विभक्त कर सकते हैं। श्रेयसकारी और प्रेयसकारी।  श्रेयसकारी साहित्य जीवन का कल्याण करने वाला, उसे ऊंचा उठाने वाला होता है, प्रेयसकारी साहित्य मनुष्य का मनोरंजन करने वाला होता है। स्वाध्याय के अंतर्गत वह सब साहित्य आता है जो मनुष्य की उदात्त भावनाओं को जागृत करता है तथा उसे सत्कर्म करने की प्रेरणा देता है। स्वाध्याय का अर्थ केवल करना नहीं, आत्म चिंतन, विचारशीलता व जागरुकता भी है। जिस व्यक्ति में जागरुकता है वही अपने स्वयं का व अपने समाज का उत्थान कर सकता है। स्वाध्याय का लक्ष्य स्वाध्याय में हमारा लक्ष्य क्या है, यह समझना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि केवल मात्र कुछ पुस्तकों को कुछ समय के लिये पढ़ लेना वास्तविक रूप में स्वाध्याय नहीं है। स्वाध्यय का लक्ष्य है 'स्व' अर्थात् अपने आत्म-स्वरूप की जानकारी। मैं कौन हूं। मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है, मुझे क्या कर्म करने चाहिये और क्या नहीं करने चाहिये, इन सब का ठीक प्रकार से ज्ञान प्राप्त करना स्वाध्यायी का उद्देश्य है। मेने एक जैन आचार्य द्वारा लिखित शास्त्र मे पढ़ा था जैन धर्म में इसे भेद विज्ञान कहते हैं अर्थात् यह अनुभव करना कि शरीर और आत्मा अलग-अलग हैं। नश्वर शरीर के भीतर जो अविनश्वर चिरंतन आत्म-तत्व है, उसका चिंतन व बोध प्राप्त करना। भगवान महावीर ने कहा......
, 'जे एगे जाणन से सव्वं जाणई।' 
अर्थात् जो एक (आत्मा) को जानता है वह सब (जगत) को जानता है। इसी बात को आधुनिक युग में स्वामी विवेकानंद ने अभिव्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि शिक्षा मात्र विभिन्न सूचनाओं का संग्रह नहीं है जो हमारे मस्तिष्क में ठूंस ठूंस कर भर दिये जाते हैं और जो बिना आत्मसात् हुए वहां हमेशा गड़बड़ मचाते रहते हैं। हमें उन विचारों की आवश्यकता है जो 'जीवन निर्माण', 'मनुष्य निर्माण' तथा 'चरित्र निर्माण' में सहायक हों। इस प्रकार की 'मनुष्यत्व' का ज्ञान प्रदान करने वाली शिक्षा प्राप्त करना ही स्वाध्याय का लक्षण है। स्वाध्याय का महत्व जैन साधना में स्वाध्याय को बहुत महत्व दिया गया। भगवान महावीर ने कहा कि स्वाध्याय महान तप है। बारह प्रकार के आंतरिक के बाह्य तपों में स्वाध्याय के समान तप न तो है, न हुआ है और न होगा। श्री उत्तराध्ययन सूत्र में भगवान से पूछा गया, 'हे भगवान! स्वाध्याय करने से जीव किस बात का लाभ प्राप्त करता है?' भगवान ने उत्तर दिया, 'सज्झाएणं नाणावर णिज्जं कम्मं खवेई।' अर्थात स्वाध्याय से जीव ज्ञानावरणीय (ज्ञान को रोकने वाले) कर्मों का नाश करता है। भगवती सूत्र में प्रभु महावीर ने बतलाया कि सही प्रकार से स्वाध्याय करने से मनुष्य अपने जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य अर्थात् परमात्म-स्वरूप को प्राप्त कर सकता है। स्वाध्याय के अंग जैन शास्त्रों में स्वाध्याय के बारे में विशद विवेचना मिलती है। प्राचीन काल में जब पुस्तकों का प्रचलन नहीं था, तब भी स्वाध्याय किया जाता था। उस समय ज्ञान को कंठस्थ रखने का रिवाज था। शिष्य गुरुजनों से शास्त्र श्रवण कर उन्हें अपनी स्मृति में संजो कर रखते थे। वेदों को 'श्रुति' और आगम की श्रुत कहा गया, यह इसी तथ्य का सूचक है। आचार्य कुदकुंद ने लिखा है  अन्य सभी व्यक्ति इंद्रियों की आंख वाले हैं पर साधु आगम की आंख वाला है। कहने का तात्पर्य यह है कि साधक निरंतर आगम ज्ञान पर चिंतन मनन करता रहे तथा आगम के आधार पर ही अपने जीवन का संचालन करें। स्वाध्याय कैसे करें सत्साहित्य का अध्ययन करना स्वाध्याय कहलाता है लेकिन यह स्वाध्याय किस प्रकार से किया जाए इस पर विचार करने की आवश्यकता है। स्वाध्याय में पूरा मन लगाना चाहिए। आचार्य विनोबा भावे के अनुसार स्वाध्याय गंभीरता पूर्वक करना चाहिये। उन्होंने लिखा है, अध्ययन में महत्व लम्बाई, चौड़ाई का नहीं गंभीरता का है। बहुत देर तक घंटों भांति-भांति के विषयों के अध्ययन करने को मैं लम्बा-चौड़ा अध्ययन कहता हूं। समाधिस्थ होकर नित्य थोड़ी देर किसी एक निश्चित विषय के अध्ययन को मैं गंभीर अध्ययन कहता हूं। दस-बारह घंटे सोना पर करवटें बदलते रहना-ऐसी नींद में विश्रांति नहीं मिलती बल्कि पांच छह घंटे सोयें, किंतु गाढ़ी और नि:स्वप्न निद्रा हो, तो उतनी नींद से पूर्ण विश्रांति मिल सकती है। यही बात अध्ययन की भी है। गंभीरता अध्ययन का मुख्य तत्व है।

Friday, 14 August 2020

खाद्य संयम दिवस - निरोगी जीवन जीने का महत्वपूर्ण रहस्य - उत्तम जैन ( विद्रोही )

 

खाद्य संयम दिवस - लेखक - उत्तम जैन (विद्रोही )

जब-तब खाने का भाव मिटायें |
कैसे कितना कब खाएं |
नियमित भोजन शुद्ध हवा है |
भोजन को सात्विक करना होगा |
भोजन करते समय नहीं हो,
ईर्ष्या, क्रोध, घृणा के भाव |
इनसे होते आँतों में घाव |
' संयम से खाना जीवन '
इस "वीर" वचन को रखना याद ||

तेरापंथ धर्मसंघ मे पर्युषण का प्रथम दिवस खाद्य संयम दिवस दिवस के रूप मे मनाया जाता है !  खाध्य संयम का अर्थ है खाने का संयम वेसे हमे सिर्फ इस दिन ही खाने का संयम नहीं रखना है निरोगी रहने के लिए जीवन मे खाने का संयम बहुत जरूरी है! हमे जब ही खाना खाना चाहिए जब  हमे भूख लगे   तब हम खाना खाते है तो पाचन अच्छे से होता है छोटी आंत , बड़ी आंत , पक्वाशय ,लीवर पर अतिरिक्त भार  नहीं पड़ता है फलस्वरूप हमे गेस , आम्लपित , अपचन की शिकायत नहीं होती है ! आज विज्ञान भी इससे सहमति व्यक्त करता है 
श्रावण मास में आहार संयम का महत्व:  आहार संयम निश्चित ही एक करने योग्य तप है। उपवास और बेला (दो दिन का, तीन दिन का उपवास) आदि तपस्याएं उसके अंतर्गत हैं। श्रावण-भाद्र मास में जैन लोग विशेष रूप से इस तप का प्रयोग करते हैं। यथाशक्ति, यथास्थिति वह होना भी चाहिए। कुछ लोग शारीरिक दुर्बलता अथवा अन्य व्यस्तताओं के कारण तपस्या नहीं कर पाते। उन्हें निरुत्साह होने की जरूरत नहीं। उन्हें 'ऊनोदरी' पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। निर्जरा के बारह भेदों में दूसरा भेद है ऊनोदरी। 'ऊन' का अर्थ है न्यून, कम। उदर का अर्थ है पेट। उदर को ऊन रखना, खाने में कमी करना ऊनोदरी तप है। ऊनोदरी का यही अर्थ अधिक प्रचलित है। जैन धर्म में ऊनोदरी के दो प्रकार बतलाए गए हैैैं -पहला द्रव्य अवमोदरिका एवं दूसरा भाव अवमोदरिका। यहां अवमोदरिका का भी तात्पर्य है अल्पीकरण अथवा संयम। द्रव्य अवमोदरिका का अर्थ है उपभोग में आने वाले द्रव्यों -भौतिक पदार्थों का संयम करना। भाव अवमोदरिका का संबंध हमारे अंतर्जगत से है, भावों (इमोशन्स) से है, निषेधात्मक भावों (नेगेटिव एटिच्यूड्स) के नियंत्रण से है। यह अवमोदरिका जहां जैन तपोयोग का एक अंग है, वहीं अनेक व्यावहारिक समस्याओं का समाधान भी है। कुछ लोग अनावश्यक खाते हैं, मौज उड़ाते हैं और बीमारियों को अपने घर (शरीर) में लाकर उन्हें रहने का निमंत्रण देते हैं। कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें क्षुधा शांति के लिए पर्याप्त खाद्य सामग्री भी नहीं मिलती। वे कष्ट का जीवन जीते हैं। अति भाव और अभाव की इस स्थिति में संतुलन हो जाए, तो दोनों ओर की समस्या का समाधान हो सकता है। इसी प्रकार वस्त्र, मकान, यान-वाहन आदि की बहुलता और अभाव की स्थितियां हैं। लड़का भर पेट भोजन कर उठा ही था कि मित्र के घर से प्रीतिभोज में भाग लेने के लिए निमंत्रण मिला। वह अपने वृद्ध पिता के पास जाकर बोला , पिता जी ! खाना इतना खा लिया है कि सांस भी नहीं ली जा रही। अब और भोजन के लिए निमंत्रण है। आप बताएं क्या करूं ? पिता ने कहा , पुत्र ! प्राणों की चिंता मत करो , जाओ भोजन करो। मुफ्त का भोजन कभी कभी  मिलता है ? शरीर तो अगले जन्म में फिर मिल जाएगा। पिता की यह व्यंग्य प्रेरणा उपभोक्तावादी संस्कृति में पलने वालों के लिए एक बोध - पाठ है। भाव अवमोदरिका , द्रव्य अवमोदरिका से कहीं अधिक मूल्यवान है। उसके उतने ही प्रकार हो सकते हैं , जितने मनुष्य के निषेधात्मक भाव होते हैं , जैसे क्रोध , लोभ , अहंकार आदि। एक बहुभोजी व्यक्ति संत के पास गया और बोला , आप अनुभवी हैं , बताइए मैं कौनसी दवा लूं जिससे भोजन ठीक तरह से पच जाए ? संत ने कहा , जब तक एक दवा नहीं लोगे ,और दवा क्या काम करेगी ? वह दवा है ऊनोदरी। तुम ज्यादा खाते हो और पाचन - क्रिया को खराब करते हो। ऊनोदरी करो , कम खाओ , पाचन के लिए यह सर्वश्रेष्ठ दवा है। ऊनोदरी जहां शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है , वहीं आध्यात्मिक साधना में भी सहायक है। दिगंबर साहित्य में कहा गया है - क्षमा , मुक्ति आदि दस धर्मों की साधना , आराधना , योग , स्वाध्याय और इंद्रिय नियंत्रण में ऊनोदरी तप सहायक बनता है। साधु का जीवन निश्चिंतता और अनिश्चितता का जीवन है। निश्चित इस रूप में कि वहां कोई चिंता नहीं होती। भिक्षा में कल क्या मिलेगा ? यह चिंता साधु नहीं करता। आज जो उपलब्ध है , उसी में संतुष्ट रहता है। अनिश्चितता इस रूप में कि मुनि को कभी सरस , कभी विरस , कभी ठंडा और कभी गरम , कभी पर्याप्त और कभी अपर्याप्त भोजन मिलता है। मुझे स्मरण है , भिक्षा में आहार कम उपलब्ध होने पर एक हमारे स्थविर संत बहुधा एक सूत्र दोहराया करते थे , थोड़े में गुण घणां - कम में बहुत गुण होते हैं। आहार कम होगा तो ऊनोदरी तप होगा , पाचन क्रिया ठीक रहेगी। वस्त्र कम हैं तो उसके साज - संभाल में समय कम लगेगा। बातों की आदत कम है तो स्वाध्याय और ध्यान में अधिक संलग्नता होगी। द्रव्य अवमोदरिका के भी दो प्रकार हैं - पहला है उपकरण द्रव्य अवमोदरिका एवं दूसरा भक्तपान अवमोदरिका। वस्त्र , पात्र आदि उपकरणों का संयम करना उपकरण द्रव्य अवमोदरिका है। एवं खान - पान में संयम करना भक्तपान द्रव्य अवमोदरिका है।खाद्य का हमारे मन मस्तिष्क पर भी असर होता है एक कहावत है " जेसा खाये अन्न वेसा होइए मन 
अर्थात खाना भी हमे सात्विक  खाना ही खाना चाहिए सात्विक खाने के साथ हमे यह भी ध्यान रखना चाहिए हमे जितनी भूख हो उससे कुछ कम खाये जिससे खाने के कम से कम 1 घंटे बाद पानी के लिए जगह बची हुई रहे साथ मे खाना हमे एक जगह बेठकर खाने के बीच मे पानी  नहीं पीना व खाते समय यह ध्यान रहे मोनव्रत रखते हुए खाने को इतना चबाये की जेसे हम खा नहीं पी रहे है अर्थार्त खाने को पियो ओर पानी को खाओ ( पानी बेठकर एक एक घूंट पीना चाहिए इन सभी संयम को हम खाध्य संयम के रूप मे ले सकते है  

Saturday, 20 June 2020

योग ओर स्वास्थ्य

योग एक ऐसी कला / प्रकिया है : जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने का प्रयास किया जाता है ! इन तीनो के एक साथ आने से जो अनंत ऊर्जा मिलती है, यह ऊर्जा ही जीवनी-शक्ति कहलाती है ! इस शक्ति के द्वारा हम न सिर्फ एक अच्छा स्वास्थय प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि अपने जीवन को सार्थक और सफल बना सकते हैं ! यह जीवनी- शक्ति अनमोल है और योग द्वारा हम इसे आसानी के साथ हासिल कर सकते हैं 
व्यायाम का एक प्राचीन रूप जो भारतीय समाज में हजारों साल पहले विकसित हुआ था और तब से लगातार इसका अभ्यास किया जा रहा है। इसमें किसी व्यक्ति को अच्छे आकार में रखने के लिए और बीमारियों और अक्षमताओं के विभिन्न रूपों से छुटकारा पाने के लिए विभिन्न प्रकार के अभ्यास शामिल हैं। यह ध्यान के लिए एक मजबूत तरीका भी माना जाता है जो मन और शरीर को शांत करने में मदद करता है। आज दुनिया भर में योग का अभ्यास किया जा रहा है। दुनिया भर के लगभग 2 अरब लोग योगाभ्यास करते हैं।
योग बहुत सुरक्षित है और किसी के द्वारा भी कभी भी बच्चों द्वारा सुरक्षित रूप से इसका अभ्यास किया जा सकता है। योग शरीर, मन और आत्मा का संतुलन बनाने के लिए शरीर के अंगों को एक साथ लाने का एक अभ्यास है। मन-शरीर संबंध को संतुलित करके प्रकृति से जुड़ने के लिए योग सबसे अनुकूल विधि है। यह एक प्रकार का व्यायाम है जो संतुलित शरीर के माध्यम से किया जाता है और आहार, श्वास और शारीरिक मुद्राओं पर नियंत्रण पाने की आवश्यकता होती है। यह शरीर के विश्राम के माध्यम से शरीर और मन के ध्यान से जुड़ा हुआ है।
यह तनाव और चिंता को कम करके शरीर और मस्तिष्क के उचित स्वास्थ्य प्राप्त करने के साथ-साथ मन और शरीर पर नियंत्रण करने के लिए बहुत उपयोगी है। बहुत सक्रिय और मांग करने वाले जीवन विशेष रूप से किशोरों और वयस्कों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए दैनिक आधार पर एक अभ्यास के रूप में योग किसी के द्वारा भी किया जा सकता है। यह स्कूल, दोस्तों, परिवार और पड़ोसियों के जीवन के कठिन समय और दबाव का सामना करने में मदद करता है। योग अभ्यास के माध्यम से व्यक्ति अपनी समस्याओं और दूसरों द्वारा दिए गए तनाव को गायब कर सकता है। यह शरीर, मन और प्रकृति के बीच के संबंध को आसानी से पूरा करने में मदद करता है।
योग सभी के जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि यह शरीर और मन के बीच संबंधों को संतुलित करने में मदद करता है। यह व्यायाम का प्रकार है जो नियमित अभ्यास से शारीरिक और मानसिक अनुशासन सीखने में मदद करता है  योग में प्राणायाम और कपाल भांति शामिल हैं जो सबसे अच्छे और प्रभावी श्वास व्यायाम में से एक हैं। योग एक थेरेपी है जो नियमित रूप से अभ्यास करने पर धीरे-धीरे बीमारियों से छुटकारा पाने में मदद करती है। आमतौर पर लोग सोचते हैं कि योग व्यायाम का एक रूप है जिसमें शरीर के अंग को खींचना और मोड़ना शामिल है लेकिन योग सिर्फ व्यायाम से कहीं अधिक है। योग मानसिक, आध्यात्मिक और शारीरिक पथ के माध्यम से जीवन जीने की कला या कला है। यह शांति प्राप्त करने और आंतरिक स्वयं की चेतना में टैप करने की अनुमति देता है।
यह सीखने में भी मदद करता है कि कैसे मन, भावनाओं और कम शारीरिक जरूरतों की खींचातानी से ऊपर उठकर दैनिक जीवन की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। योग एक शरीर, मन और ऊर्जा के स्तर पर काम करता है।  योग का अभ्यास करने का एक मुख्य लाभ यह है कि यह तनाव को प्रबंधित करने में मदद करता है। तनाव इन दिनों आम है और एक के शरीर और दिमाग पर विनाशकारी प्रभाव पड़ने के लिए जाना जाता है। तनाव के कारण लोगों में स्लीपिंग डिसऑर्डर, गर्दन में दर्द, कमर दर्द, सिर दर्द, तेज हृदय गति, पसीने से तर हथेलियां, असंतोष, गुस्सा, अनिद्रा और ध्यान केंद्रित करने में असमर्थता जैसी गंभीर समस्याएं पैदा हो जाती हैं।
योग को समय की अवधि में इस प्रकार की समस्याओं को ठीक करने के लिए वास्तव में प्रभावी माना जाता है। यह ध्यान और साँस लेने के व्यायाम से तनाव को प्रबंधित करने में एक व्यक्ति की मदद करता है और एक व्यक्ति की मानसिक भलाई में सुधार करता है। नियमित अभ्यास से मानसिक स्पष्टता और शांति मिलती है जिससे मन शांत होता है

Sunday, 5 April 2020

मजदूरो का हुआ ओर होने वाले पलायन का क्या होगा नतीजा - (उत्तम जैन -विद्रोही )

पलायन करते मजदूर 
कोरोना के चलते भारत के 16 राज्यों के 331 शहरों में इन दिनों संपूर्ण लॉकडाउन है। इसके साथ ही बस, ट्रेन और हवाई यातायात भी बंद है। सरकार का तर्क है कि इससे संक्रमण फैलने की दर में कमी आएगी और संक्रमण को नियंत्रित करने में शतप्रतिशत कामयाबी मिलेगी। लेकिन मुंबई जैसे अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर पहले 2-3 दिन जांच में ढिलाई बरती गई। वहां तैनात डॉक्टरों का कहना था कि स्टांपिंग करके यात्रियों को निजी गाड़ियों या टैक्सी से जाने की दी गई सलाह से महाराष्ट्र में वायरस फैला। जो कैटिगरी बनाई भी गईं, उसमें सावधानियां बरतने के बजाय उसे हल्के में लिया गया। सरकार ने ठोस रणनीति, नियोजन और आबादी की आवश्यकता का कोई अध्ययन नहीं किया।
सरकार ने सिर्फ और सिर्फ लॉकडाउन का आनन-फानन में जो निर्णय लिया, वह कोरोना को रोकने में अभी तक कारगर साबित होता दिखाई नहीं दे रहा है, उलटे इससे अनेक जटिल समस्याएं पैदा हुई हैं। प्रवासियों का पलायन होने लगा। मुंबई सूरत जैसे अनेक महानगरों से हजारों लोगों ने पहले ट्रेन और बस से अपने अपने गांवों की ओर पलायन किया। जब ट्रेनें और बसें बंद हो गईं तो वे पैदल ही अपने-अपने गांवों को निकल पड़े। वहीं जरूरत की चीजों की भीषण कालाबाजारी भी शुरू हुई। लॉकडाउन के पहले ही अगर सरकार राशन, दवा और अन्य जरूरी चीजों की उपलब्धता का समुचित इंतजाम करती तो शायद लोगों के मन में वह अविश्वास और खौफ न होता, जो अभी है।

महानगरों में खड़ी तमाम बड़ी इमारतों में इनका पसीना लगा है। यही हैं वो जिन्होंने महानगर में मेट्रो के सपने को साकार किया। ये मजदूर पिछले दिनों बड़ी संख्या में लौटते दिखे अपने गांव-घर की ओर। झुंड के झुंड अपनी गठरियां, पोटलियां और कनस्तर उठाए लोग, बच्चों को गोद में लिए, कंधे पर बिठाए पैदल चलते स्त्री-पुरुष। विभाजन के बाद आजाद देश के लिए यह बिल्कुल नई तस्वीर है।
22 मार्च का जनता कर्फ्यू ट्रेलर था। कोरोना वायरस के चलते उपजी हेल्थ इमर्जेंसी के मद्देनजर 24 मार्च से देश में 21 दिन के लिए संपूर्ण लॉकडाउन कर दिया गया। साथ ही यह आश्वाटसन भी दिया गया कि आवश्यक वस्तुओं की कोई कमी नहीं होने दी जाएगी। पर लगता है हर व्यक्ति को बचाने और घरों के अंदर तमाम आवश्यक सुविधाएं सुनिश्चित करने का संकल्प नीचे तक पहुंचाने में कहीं कोई चूक रह गई। रोज कमाने और रोज खाने वाले लाखों लोगों तक या तो यह आश्वासन पहुंचा नहीं या पहुंचने के बाद भी उन्हें आश्वस्त नहीं कर सका। नतीजा यह कि दो दिन होते-होते उनकी हिम्मत टूट गई। उन्हें लगा लॉकडाउन की इस अवधि में वे घरों के अंदर बेमौत मर जाएंगे। तब तक बसों ट्रेनों की आवाजाही रोकी जा चुकी थी। सो, हजारों की संख्या में ये लोग पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर की दूरी नापने का इरादा लेकर निकल पड़े कि मरें भी तो कम से कम अपनों के बीच मरें, उन लोगों के बीच जिन्हें हमारे जीने-मरने से फर्क पड़ता है
लॉकडाउन के दुष्प्रभाव और चुनौतियों का जायजा सरकारी स्तर पर नहीं लेने से पलायन और खौफ का मंजर है। सरकार को आम लोगों को आवश्यक सुविधाओं की आपूर्ति पर जोर देना चाहिए। इसके बाद भी अगर कोई लॉकडाउन का उल्लंघन करता है तो कानून अपना काम जरूर करे।

Saturday, 4 April 2020

कोरोना संकट पूरी दुनिया के मौजूदा स्वरूप को बदलने वाला है

कोरोना संकट पूरी दुनिया के मौजूदा स्वरूप को बदलने वाला है। एक बार स्वास्थ्य से जुड़ा खतरा टल जाए, उन खतरों पर काबू पा लिया जाए तो भी हालात के तुरंत सामान्य होने की संभावना कम दिख रही है। कोरोना संकट के बहुआयामी प्रभावों में एक यह भी होगा कि आम लोग उन सरकारों या राजनीतिक दलों पर नजदीकी से नजर रखेंगे जो कोरोना के खिलाफ लड़ाई की अगुआई कर रहे हैं। आम जनता यह देखेगी और परखेगी कि अब तक के सबसे बड़े संकट में आम देशवासियों से कनेक्ट करने और उनकी जरूरतों को समझने के मामले में किन सरकार या दलों ने कैसा रुख अपनाया। इसके आधार पर सियासी अंक भी मिलना तय है। इसके पीछे अहम कारण है कि कोरोना संकट के बाद आने वाले दिनों में हर कोई इसके असर से गुजरेगा और उसकी जिंदगी के कई अहम मसले इससे तय होंगे  वेसे  इस महामारी पर हमारी केंद्र व राज्य सरकारे पूरी सावधानी ओर सतर्कता से सराहनिय कार्य कर रही थी  मगर इस बीच तबलीगी जमात का मरकज ने हमारे लिए बहुत बड़ी समस्या खड़ी कर दी नर्सो डॉक्टर के साथ इनकी हरकत ने पूरी कॉम को बदनाम कर दिया    
दिल्ली का निजामुद्दीन इलाका… यहीं मौजूद है बंगले वाली मस्जिद… और इस मस्जिद में है तबलीगी जमात का मरकज… देश में जब कोरोना के बढ़ते प्रकोप को रोकने के लिए सरकारों से लेकर सड़क के किनारे रहकर एक पान की दुकान लगाने वाली 75 साल की एक बूढ़ी महिला भी जब अपनी जिम्मेदारी निभा रही थी, तब कुछ हजार लोग जो एक खास मजहब से जुड़े थे, वे बेफिक्र होकर मरकज में छिपे बैठे थे… एक जाहिल किस्म के मौलाना ने खांसते हुए लोगों के साथ आम मुसलमानों को भी मेसेज दिया, ‘ये ख्याल बेकार है कि मस्जिद में जमा होने से बीमारी पैदा होगी, मैं कहता हूं कि अगर तुम्हें यह दिखे भी कि मस्जिद में आने से आदमी मर जाएगा तो इससे बेहतर मरने की जगह कोई और नहीं हो सकती।’
मतलब हद दर्जे की बेपरवाही! कौन होता है मुसलमान? वही ना जो अपने ईमान का पक्का होता है? ये कैसा इस्लाम है जो इंसानियत से ऊपर हो गया? मौलाना साद के मुताबिक, अल्लाह कोई मुसीबत इसलिए ही लाता है कि देख सके कि इसमें मेरा बंदा क्या करता है। अरे मौलाना! अल्लाह मुसीबत नहीं लाता, मुसीबत तो शैतान लाता है… अल्लाह तो अपने बंदों को मुसीबत में लड़ने की ताकत देता है… शायद मौलाना साद और उस मरकज में छिपकर बैठे मुसलमानों पर शैतान हावी हो गया था, शायद वे अल्लाह की दी हुई ताकत को समझ ही नहीं पाए और डरकर, चालाकी से बैठ गए मरकज में छिपकर…बात इतनी सी ही होती तो भी एक बार को मैनेज हो जाता, लेकिन जब सरकारें और प्रशासन लगातार यह कहता रहा कि कोरोना की गंभीरता को समझें तो भी ये लोग वहां से निकले और भागकर देश की अलग-अलग मस्जिदों में छिपकर बैठ गए। लखनऊ, कानपुर, आगरा, मुरादाबाद, कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु और अंडमान समेत पता नहीं कहां-कहां इन लोगों ने लाखों लोगों तक कोरोना के खतरे को पहुंचा दिया।
जीवन और मौत से जुड़े संकट का समय, ऐसा समय होता है, जब किसी व्यक्ति की नीयत और उसके इरादों को अच्छी तरह से समझा जा सकता है। यह ऐसा समय है, जिसमें हमारी वास्तविक प्रकृति का पता चलता है। मेरा मानना है कि एक तरफ जहां बड़ी संख्या में बिना दिमाग वाले ट्रोल्स और भक्त हैं, जो किसी भी सूरत में अपने धार्मिक और अतिवादी विचारों को आगे बढ़ाने में लगे हैं,वहीं दूसरी तरफ “बौद्धिक” और “जागृत” समुदाय का एक बड़ा हिस्सा मोदी के प्रति नफरत की भावना से ग्रस्त है तो कोई राहुल व सोनिया को निशाना बना रहे है भारतीय राजनीति में आज जो कुछ भी हो रहा है, वह राजनीति के लिए एक त्रासदी तो है ही, लेकिन सबसे बढ़कर, यह मानवता के लिए एक त्रासदी है। भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की खराब स्थिति, अपर्याप्त परीक्षण किट, गरीबी, अनुशासनहीन, अव्यवस्थित और अवैज्ञानिक सोच वाली आबादी जैसी तमाम चुनौतियों के बावजूद मोदी ने महामारी काल  में देश के लिए जो किया है वो अकल्पनीय, अविश्वसनीय और अभूतपूर्व है।

Friday, 3 April 2020

विश्व का कोई देश किसी संक्रामक बीमारी को अब लेगा हल्के में नही लेगा - करोना एक सबक - उत्तम जैन ( विद्रोही)

करोना का सफर चीन से शुरू होकर विश्व के अधिकतर देशो को संक्रमित कर चुका है लाखो लोग विश्व मे इस महामारी के शिकार हुए करोना से लड़ने के लिए सभी संक्रमित देशो ने कमर कस ली अच्छे से मुक़ाबला भी किया मगर कुछ देश थोड़ी लापरवाही से ज्यादा शिकार हुए आगार देखा जाए हमारा देश इस मामले मे भाग्यशाली रहा है यह मोदी सरकार की सतर्कता का परिणाम है इस महामारी ने विश्व को एक सतर्कता का संदेश दिया है विश्व का कोई देश  किसी संक्रामक बीमारी को अब लेगा हल्के में नही लेगा 
   
संक्रामक रोग, रोग जो किसी ना किसी रोगजनित कारकोंं (रोगाणुओं) जैसे प्रोटोज़ोआ, कवक, जीवाणु, वायरस इत्यादि के कारण होते हैं। संक्रामक रोगों में एक शरीर से अन्य शरीर में फैलने की क्षमता होती है। प्लेग, टायफायड, टाइफस, चेचक, इन्फ्लुएन्जा इत्यादि संक्रामक रोगों के उदाहरण हैं। टाइफस (सन्निपात) नामक बीमारी का पहला प्रभाव 1489 ई. में यूरोप के स्पेन में देखने को मिला था। इसे जेल बुखार या जहाज बुखार के नाम से भी जाना जाता है। ये बीमारी जेलों और जहाज़ों में बहुत बुरी तरह से फैलती थी। 
टाइफस नामक बीमारी मक्खियों से उत्पन्न बैक्टीरियल इन्फेक्शन से होती है। ये जीवाणु जनित बीमारी है। 1542 ई. में फ्रांस और इटली की लड़ाई में 30000 सैनिकों की मृत्यु भी टाइफस नामक बीमारी से हुई थी। बूबोनिक प्लेग और टाइफस ज्वर ने 1618- 1648  में 8 मिलियन जर्मन लोगों के प्राण ले लिए थे। इस बीमारी ने 1812  में रूस में नेपोलियन की गांदरे आर्मी के विनाश में भी एक प्रमुख भूमिका अदा की थी। प्रथम विश्व युद्ध में टाइफस (सन्निपात) महामारी से सर्बिया में 150000 से ज्यादा लोग मरे थे। रूस में  1918  से 1922 तक सन्निपात महामारी से लगभग 25 मिलियन लोग संक्रमित हुए थे और 3 मिलियन लोगों की मौत हुई थी। 

इन्फ्लुएंजा (श्लैष्मिक ज्वर) एक वायरल संक्रमण है।यह मानव के श्वसन तंत्र -नाक, गले और फेफड़ों पैर हमला करता है। इन्फ्लुएंजा को आमतौर पर 'फ्लू' कहा जाता है, लेकिन यह पेट के फ्लू वायरस के समान नहीं है जो दस्त और उल्टी के कारण बनता है। कोविड-19 और फ्लू दोनों ही वायरल इंफेक्शन हैं। ये एक इंसान से दूसरे इंसान में फ़ैल सकते हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार दोनों कोविड-१९ और फ्लू फैलने वाले वायरस हैं। 

फ्लू की बात करें तो यह एक बहती नाक से शुरू होता है। इसके बाद खांसी और बुखार होता है। कोरोना वायरस से संक्रमित बहुत कम लोगों ने खांसी के साथ एक बहती हुई नाक होने की सूचना दी है। इसमें सांस की बीमारी से लेकर मतली, सांस लेने में तकलीफ, गले में खराश , बुखार जैसे लक्षण और फिर निमोनिया हो जाता है। चिकित्सा के क्षेत्र में चिकित्सा के जनक के नाम से विख्यात यूनानी चिकित्सक 'हिप्पोक्रेट्स' ने सबसे पहले  412 ई. में इन्फ्लुएंजा का वर्णन किया था। 

प्रथम इन्फ्लुएंजा विश्व महामारी को  1580 में दर्ज किया गया था। तब से हर वर्ष 10 से 30 वर्ष के भीतर इन्फ्लुएंजा विश्व महामारियों का प्रकोप होता रहा है। कोविड-19 वायरस से पहले भी कई वायरस दस्तक दे चुके हैं जैसे चेचक(वेरियोला), एशियाई फ्लू, स्पेनिश फ्लू, हांगकांग फ्लू, मार्स वायरस, सार्स वायरस, इबोला वायरस, निपाह वायरस, जीका वायरस और स्वाइन फ्लू। चेचक एक विषाणु जनित रोग है।

चेचक बीमारी का सबसे पहला सबूत मिस्र के फिरौन रामसेस वी से आता है। फिरौन की मृत्यु 1157 ई.पू हुई थी। फिरौन के ममीफाइड अवशेष में उनकी त्वचा पर टेल-टेल पॉक्स मार्क दिखते हैं। यह बीमारी बाद में एशिया, अफ्रीका और यूरोप में व्यापार मार्ग पर फ़ैल गई। अंततः अमेरिका तक पहुंच गई। 

यूरोपीय उपनिवेश के दौरान अनुमानित 90 प्रतिशत स्वदेशी दुर्घटनाएं सैन्य विजय के बजाए बीमारी के कारण हुईं।  1950 ई. के दशक में  50 मिलियन मामले इस बीमारी से आते रहे। चेचक बीमारी दो प्रकार के वायरस से मिलकर बनी है, वेरियोला प्रमुख वायरस और वेरियोला नाबालिग वायरस। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन ने सफल टीका परीक्षण के बाद 1979 में वेरियोला नाबालिग वायरस और 2011 ई. में वेरियोला प्रमुख वायरस का खात्मा कर दिया था। इस प्रकार चेचक बीमारी एकमात्र मानव संक्रामक रोग है जो सम्पूर्ण रूप से समाप्त हो चुकी है।