Tuesday, 22 May 2018

बच्चो मे सुसंस्कार पालक और शिक्षक की साझा जिम्मेदारी- उत्तम जैन ( विद्रोही )

स्कूल  शिक्षा का वो मंदिर होता है, जिसमें बच्चा संस्कार, शिष्टाचार व नैतिकता का पाठ पढ़ता है। शिक्षण के इस दरबार में विध्यार्थी  को किताबी शिक्षा के साथ-साथ एक जिम्मेदार नागरिक बनने के गुर भी सिखाए जाते हैं। वर्तमान दौर में शिक्षा के व्यापक प्रचार-प्रसार व आवश्यकता को देखते हुए हर माता-पिता अपने बच्चों को अच्छे से अच्छे स्कूल में तालीम दिलाने का ख्वाब सँजोते हैं। अपने इस ख्वाब को पूरा करते हुए दिन भर जी तोड़ मेहनत करके वो पाई-पाई बचाकर अपने बच्चों के स्कूल की फीस जुटाते हैं।

बच्चे को अच्छे स्कूल में दाखिला दिलवाने के बाद अपने कर्तव्यो से इतिश्री करते हुए पालकगण बच्चों को संस्कारवान, जिम्मेदार व सभ्य नागरिक बनाने की सारी जिम्मेदारियाँ शिक्षकों पर थोप देते हैं।  यह सत्य है कि बच्चे की प्रथम पाठशाला उसका परिवार होता है। बच्चा जो कुछ भी सीखता है, वो अपने परिवार, परिवेश व संगति से सीखता है।बच्चों को सुधारने या बिगाड़ने में उसके माता-पिता का भी उतना ही हाथ होता है, जितना कि उसके शिक्षकों व सहपाठियों का। बच्चों को संस्कारवान बनाने की सबसे बड़ी व महत्वपूर्ण जिम्मेदारी माता-पिता की है।  निश्चित तौर पर पर कुछ हद तक यह जिम्मेदारी शिक्षकों की भी है

परंतु विडंबना यह है कि वर्तमान में बच्चों को स्कूल व परिवार दोनों ही जगह संस्कार नहीं मिल पा रहे हैं।ऐसा इसलिए क्योंकि बच्चा स्कूल में तो केवल 5 से 6 घंटे बिताता है परंतु अपना शेष समय अपने घर पर बिताता है। ऐसे में माता-पिता व शिक्षक दोनों की बराबरी की जिम्मेदारी होती है कि वे अपने बच्चों को संस्कार व शिष्टाचार का सबक सिखाएँ। अकेले शिक्षकों या स्कूल प्रशासन पर सारी जिम्मेदारियाँ मढ़ना कहाँ तक उचित है?   बच्चों को संस्कारवान बनाने में उसके परिवार का सबसे बड़ा हाथ होता है। वो संस्कार ही हैं, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होते हैं। परिवार से संस्कारों का सबक सीखने के बाद विद्यालय की बारी आती है, जहाँ बच्चों को किताबी शिक्षा के साथ-साथ नैतिक शिक्षा का भी पाठ पढ़ाया जाता है। मेरा मानना है कि स्कूल में बच्चों को संस्कारों के साथ-साथ राष्ट्रवाद का भी पाठ पढ़ाना चाहिए, जिससे कि बच्चा एक संस्कारवान संतान व जिम्मेदार नागरिक बने।  

इस चर्चा का सार केवल यही है कि यदि शिक्षक और पालक इसी प्रकार एक-दूसरे पर आरोप मढ़ते रहे तो हम कभी किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाएँगे और बच्चे संस्कारवान के बजाय संस्कारहीन बनते जाएँगे। 

लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही ) 

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