इसी प्रकार किसी आम आदमी या फिर किसी छोटे मोटे कर्जदार के कर्ज न चुका पाने की स्थिति में बैंक उसकी सम्पत्ति तक जब्त करके अपनी रकम वसूल लेते हैं लेकिन बड़े बड़े पूंजीपति घरानों के बैंक से कर्ज लेने और उसे नहीं चुकाने के बावजूद उन्हें नए कर्ज पर कर्ज देते जाते हैं। नीरव मोदी के मामले में, पीएनबी जो कि कोई छोटा मोटा नहीं देश का दूसरे नम्बर का बैंक है, ने भी कुछ ऐसा ही किया। नहीं तो क्या कारण है कि 2011 से नीरव मोदी को पीएनबी से बिना किसी गैरेन्टी के गैरकानूनी तरीके से बिना बैंक के साफ्टवेयर में एन्ट्री करे लेटर आँफ अन्डरटेकिंग (एलओयू) जारी होते गए और इन 7 सालों से जनवरी 2018 तक यह बात पीएनबी के किसी भी अधिकारी या आरबीआई की जानकारी में नहीं आई? हर साल बैंकों में होने वाले ऑडिट और उसके बाद जारी होने वाली ऑडिट रिपोर्ट इस फर्जीवाड़े को क्यों नहीं पकड़ पाई? क्यों इतने बड़े बैंक के किसी भी छोटे या बड़े अधिकारी ने इस बात पर गौर नहीं किया कि हर साल बैंक से एलओयू के जरिये इतनी बड़ी रकम जा तो रही है लेकिन आ नहीं रही है? यहाँ रोचक प्रश्न है एक या दो एलओयू की नहीं बल्कि 150 एलओयू जारी होने की है। इससे भी अधिक रोचक तथ्य यह है कि एक एलओयू 90- 180 दिनों में एक्सपायर हो जाता है और अगर कोई कर्ज दो साल से अधिक समय में नहीं चुकाया जाता तो बैंक के ऑडिटर्स को उसकी जानकारी दे दी जाती है तो फिर नीरव मोदी के इस केस में ऐसा क्यों नहीं हुआ? इतना ही नहीं एक बैंक का चीफ विजिलेन्स अधिकारी बैंक की रिपोर्ट बैंक के मैनेजर को नहीं बल्कि भारत के चीफ विजिलेन्स कमिशन को देता है लेकिन इस मामले में किसी भी विजिलेन्स अधिकारी को 7 सालों तक पीएनबी में कोई गड़बड़ दिखाई क्यों नहीं दी? इसके अलावा हर बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टरस की टीम में एक आरबीआई का अधिकारी भी शामिल होता है लेकिन उन्हें भी इतने साल इस घोटाले की भनक नहीं लगी? आश्चर्य है कि जनवरी 2018 में यह घोटाला सामने आने से कुछ ही दिन पहले नीरव मोदी को इस खेल के खत्म हो जाने की भनक लग गई जिससे वो और उसके परिवार के लोग एक एक करके देश से बाहर चले गए? लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि नीरव मोदी को नीरव मोदी बनाने वाला कौन है? क्या कोई किसान या फिर आम आदमी नीरव मोदी बन सकता है? जवाब तो हम सभी जानते हैं।
ऐसा नहीं है कि हमारे देश के बैंकों में कर्ज देने का सिस्टम न हो लेकिन कुछ मुठ्ठी भर ताकतों के आगे पूरा सिस्टम ही फेल हो जाता है। जिस प्रकार पीएनबी के तत्कालीन डिप्टी मैनेजर गोकुलनाथ शेट्टी सिंगल विंडो आँपरोटर मनोज खरात को गिरफ्तार किए जाने के बाद यह जानकारी सामने आई है कि पीएनबी के कुछ और अफसरों की मिलीभगत से इस घोटाले को अंजाम दिया गया, यह स्पष्ट है कि सारे नियम और कानून सब धरे के धरे रह जाते हैं और करने वाले हाथ साफ करके निकल जाते हैं क्योंकि आज तक कितने घोटाले हुए, कितनी जाँचे हुईं, अदालतों में कितने मुकदमे दायर हुए, कितनों के फैसले आए? कितने पकड़े गए? कितनों को सजा हुई? आज जो नाम नीरव मोदी है कल वो विजय माल्या था। दरअसल आज देश में सिस्टम केवल बैंकों का ही नहीं न्याय व्यवस्था समेत हर विभाग का फेल है इसलिए सिस्टम पस्त लेकिन अपराधियों के हौसले बुलंद हैं।
जीवन में आगे बढ़ने के लिए शार्ट कट्स को चुनने वाला हर शख्स आज नीरव मोदी बनने के लिए तैयार बैठा है लेकिन जबतक सिस्टम के अन्दर बैठा व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह ईमानदारी से करेगा वो उसे नीरव मोदी नहीं बनने देगा। इसलिए नीरव मोदी जैसे लोग जो इस देश के अपराधी हैं, उस आम आदमी के गुनाहगार हैं जिनकी गाढ़ी मेहनत की कमाई से इस रकम को वसूला जाएगा, उससे अधिक दोषी तो सिस्टम के भीतर के वो लोग हैं जो नीरव मोदी जैसे लोगों को बनाते हैं। इसलिए जब तक इन नीरव मोदी के “निर्माताओं” पर कठोर कार्यवाही नहीं की जाएगी देश में नए चेहरों और नए नामों से और नीरव मोदी पैदा होते रहेंगे।
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )
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