Wednesday, 7 March 2018

हालात कहां बदले हैं…. महिला सशक्तिकरण

भारतीय समाज की सबसे बडी विशेषता उसकी अनेकता में एकता की भावना है. यहाँ विभिन्न प्रकार वर्गों के लोग निवास करते है. इनमे विभिन्न प्रकार की परंपराएँ प्रचलित है. वैदिक धर्म यहाँ के अधिकांश भाग का धर्म है. जो विदेशी आये वे इस समाज में मिलते चले गए. कुछ हद तक उन्होंने अपनी मौलिकता भी बनाये रखी. ऐसे बहुविधि समाज में स्त्रियों का अपना विशेष स्थान रहा है. शास्त्रों में लिखा हुआ है कि पत्नी पुरुष का आधा भाग है. वह एक श्रेष्ट मित्र भी है. यह भी कहा जाता है कि जहाँ नारी कि पूजा होती है वहीँ देवता रमण करते है. प्राचीन युग में नारी हर प्रकार से सम्मानित थी. पर आज उसकी स्थिति बिलकुल भिन्न है. उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों कि दशा ठीक नहीं थी. बाल-विवाह प्रचलित हो गया था. वैवाहिक स्वतंत्रता समाप्त हो चुकी थी. बहु-विवाह प्रथा जोरों पर थी. भारतीय समाज शुरू से ही पुरुष  प्रधान रहा है। यहां महिलाओं को हमेशा से दूसरे दर्जे का माना जाता है। पहले महिलाओं के पास अपने मन से कुछ करने की सख्त मनाही थी। परिवार और समाज के लिए वे एक आश्रित से ज्यादा कुछ नहीं समझी जाती थीं। ऐसा माना जाता था कि उसे हर कदम पर पुरुष के सहारे की जरूरत पड़ेगी ही।  लेकिन अब महिला उत्थान को महत्व का विषय मानते हुए कई प्रयास किए जा रहे हैं और पिछले कुछ वर्षों में महिला सशक्तिकरण के कार्यों में तेजी भी आई है। इन्हीं प्रयासों के कारण महिलाएं खुद को अब दकियानूसी जंजीरों से मुक्त करने की हिम्मत करने लगी हैं। सरकार महिला उत्थान के लिए नई-नई योजनाएं बना रही हैंकई एनजीओ भी महिलाओं के अधिकारों के लिए अपनी आवाज बुलंद करने लगे हैं जिससे औरतें बिना किसी सहारे के हर चुनौती का सामना कर सकने के लिए तैयार हो सकती हैं।  आज की महिलाओं का काम केवल घर-गृहस्थी संभालने तक ही सीमित नहीं हैवे अपनी उपस्थिति हर क्षेत्र में दर्ज करा रही हैं। बिजनेस हो या पारिवार महिलाओं ने साबित कर दिया है कि वे हर वह काम करके दिखा सकती हैं जो पुरुष समझते हैं कि वहां केवल उनका ही वर्चस्व हैअधिकार है।  जैसे ही उन्हें शिक्षा मिलीउनकी समझ में वृद्धि हुई। खुद को आत्मनिर्भर बनाने की सोच और इच्छा उत्पन्न हुई। शिक्षा मिल जाने से महिलाओं ने अपने पर विश्वास करना सीखा और घर के बाहर की दुनिया को जीत लेने का सपना बुन लिया और किसी भी हद तक पूरा भी कर लिया है !लेकिन पुरुष अपने पुरुषत्व को कायम रख महिलाओं को हमेशा अपने से कम होने का अहसास दिलाता आया है। वह कभी उसके सम्मान के साथ खिलवाड़ करता है तो कभी उस पर हाथ उठाता है। समय बदल जाने के बाद भी पुरुष आज भी महिलाओं को बराबरी का दर्जा देना पसंद नहीं करतेउनकी मानसिकता आज भी पहले जैसी ही है। विवाह के बाद उन्हे ऐसा लगता है कि सिर्फ मांग मे सिंदूर भरने के साथ ही  अब अधिकारिक तौर पर उन्हें अपनी पत्नी के साथ मारपीट करने का लाइसेंस मिल गया है। शादी के बाद अगर बेटी हो गई तो वे सोचते हैं कि उसे शादी के बाद दूसरे घर जाना है तो उसे पढ़ा-लिखा कर खर्चा क्यों करना। लेकिन जब सरकार उन्हें लाड़ली लक्ष्मी जैसी योजनाओं लालच देती हैतो वह उसे पढ़ाने के लिए भी तैयार हो जाते हैं और हम यह समझने लगते है कि परिवारों की मानसिकता बदल रही है। दुर्भाग्य की बात है की बातें और योजनाएं केवल शहरों तक ही सिमटकर रह गई हैं। एक ओर बड़े शहरों और मेट्रो सिटी में रहने वाली महिलाएं शिक्षितआर्थिक रुप से स्वतंत्रनई सोच वालीऊंचे पदों पर काम करने वाली महिलाएं हैंजो पुरुषों के अत्याचारों को किसी भी रूप में सहन नहीं करना चाहतीं। वहीं दूसरी तरफ गांवों में रहने वाली महिलाएं हैं जो ना तो अपने अधिकारों को जानती हैं और ना ही उन्हें अपनाती हैं। वे अत्याचारों और सामाजिक बंधनों की इतनी आदी हो चुकी हैं की अब उन्हें वहां से निकलने में डर लगता है। वे उसी को अपनी नियति समझकर बैठ गई हैं।  हम खुद को आधुनिक कहने लगे हैंलेकिन सच यह है कि आधुनिकता सिर्फ हमारे पहनावे में आया है लेकिन विचारों से हमारा समाज आज भी पिछड़ा हुआ है। आज महिलाएं एक कुशल गृहणी से लेकर एक सफल व्यावसायी की भूमिका बेहतर तरीके से निभा रही हैं। नई पीढ़ी की महिलाएं तो स्वयं को पुरुषों से बेहतर साबित करने का एक भी मौका गंवाना नहीं चाहती। लेकिन गांव और शहर की इस दूरी को मिटाना जरूरी है।
 लेखक - उत्तम जैन (विद्रोही )
मो - 84607 83401 

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