Saturday, 10 March 2018

जनमानस की पीड़ा दुःख क्या है और दवाई क्या दी जा रही है ?

हम किसी डॉक्टर के पास जाते है हर दवा के साथ एसिडिटी की दवा लिखे बगैर जिस तरह किसी भी डॉक्टर का पर्चा पूरा नहीं होता है क्यू की उसे देना जरूरी होता है उसी तरह  समाज कल्याणार्थ और समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिये बोले गये कड़वे शब्द कट्टर होते हुए भी जरूरी औषधि के रूप मे होते हैं लेकिन समाज को जाति धर्म में बाँटने के लिये बोले गये कट्टर शब्द विष होते हैं /रोगों को ठीक करने की जिम्मेदारी जहाँ चिकित्सकों की होती है वहीँ देश में व्याप्त भ्रष्टाचार विषमता कटुता वैमनस्य द्वेष रोकने की जिम्मेदारी संवैधानिक पदों पर आसीन माननीयों की होती हैं लेकिन अगर ये दोनों वर्ग अपनी नैतिक जिम्मेदारी भूलकर समाज और देश को ही खंडित करने और लूटने में लग जाएँ तो देश जरूर सीरिया जैसा बन जायेगा /डाक्टर,न्यायाधीश की कुर्सी और मंत्रिपद पर बैठा व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से तो हिंदु मुस्लिम ईसाई या सिक्ख या दलित हो सकता है लेकिन “पद” कभी भी जाति धर्म से बंधा नहीं होता /बहुत लम्बे समय से सत्तासुख या माननीयपद आनंद भोग रहे नेताओं और जजों को भी कभी कभार सरकारी दफ्तरों ,बाजारों,पैंठों, सब्जीमंडियों में भी बिना सिक्योरिटी और बिना पूर्वसूचना के घूम आना चाहिये तभी उनको देश प्रदेश के सांप्रदायिक सौहार्द्य और सहिष्णुता और महंगाई शोषण भ्रष्टाचार की असलियत का अंदाज होगा कि जनमानस की पीड़ा दुःख क्या है और दवाई क्या दी जा रही है ?
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही ) 

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