बचपन मे एक लाइन गुनगुनाते थे गाय हमारी माता है ! सनातन संस्कृति में भारतीय गाय को अत्यंत पूज्य माता माना गया है भारतीय गाय का दूध अनमोल पौष्टिक तत्वों से भरा है ! भारतीय गाय के दूध घी की सुगन्धित स्वर्णिम आभा उसे बहुमूल्य बनाती है !.भारतीय गाय के अतिउपजाऊ गोबर में विशेषतम जीवाणुरोधी तत्व भी होते हैं! हमारी गौ माता के गोबर में घातक विकिरण सोखने की अद्भुत क्षमता भी है ! गौमूत्र में अद्भुत रस रसायन होते हैं ! गौमूत्र आयुर्वेद मे वरदान जैसा है कैंसर गाँठ मोटापे जैसी असाध्य व्याधियों में गौमूत्र अर्क अमृततुल्य औषधि है यद्यपि आम जनजीवन में गौमूत्र का आतंरिक उपयोग सामान्यतः उचित नहीं माना जाता है,… लेकिन …विशेष पीड़ादायक परिस्थितियों में शुद्ध गौमूत्र अर्क का सेवन सर्वथा उचित है ! गौमूत्र गौमय से पुरातन भारतीय कृषि अत्यंत लाभदायक रही है ! मूलतः गाय से ही हम विश्वगुरु और महानतम आर्थिक शक्ति थे !…….गौमूत्र गौमय में मृदा पोषक मित्र जीवाणु प्रचुर मात्र में पाए जाते हैं !……रासायनिक खादों के अधिक उपयोग से हमारी मिट्टी का उपजाऊपन निरंतर कम हो रहा है !….. एक स्थापित सत्य यह है कि,.. आज तमाम खाद पानी रसायन डालकर हम जितना गेंहूं पैदा करते हैं ….तीस चालीस वर्ष पहले हम उतना चना उपजाते थे !……यह गाय माता का चमत्कार है !……….इतना सबकुछ होने के बावजूद आज भारतीय गायों की दशा शोचनीय है !…
गायों की दुर्दशा का मुख्य कारण हमारी अंग्रेजपरस्ती रही है कुटिल अंग्रेजपरस्तों ने भी उत्तम भारतीयता को दबाने मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है ! कई भारतीय नस्लें लुप्तप्राय हो गयी जर्सी, संकर फीजियन और अन्य विदेशी प्रजातियों को इतना बढ़ावा दिया गया कि बची देशी नस्लें दर बदर घूमने को विवश हैं !…….हमें यह पता होना चाहिए कि भारतीय गाय की सेवा मालिश से हमारे अवसाद रक्तचाप जैसी व्याधियां स्वतः दूर होती हैं !..
अब मुद्दा यह है कि गाय के सहारे मानवता का विकास कैसे किया जाय !…….इसके लिए हमें सबसे पहले भारतीय गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करना होगा !……गाय के खरीद बिक्री के लिए कारगर व्यवस्था बनानी चाहिए ,………जर्सी जैसे बीमारू विदेशी नस्लों का वीर्य उत्पादन बंद या अत्यंत कम कर देना चाहिए !…….शुद्ध गाय दूध के संचय प्रसंस्करण के लिए विशेष डेयरियाँ बननी चाहिए !……..ग्रामीण क्षेत्रों में यथायोग्य छोटी बड़ी देशी गौशालाएं खोलनी चाहिए !……..इन गौशालाओं से मानवता को दूध दही छाछ घी के साथ सर्वोत्तम खाद तथा जीवाणुनाशक औषधियां मिलेंगी ,……गौमय के समुचित प्रबंधन से हमारा गौधन पुनः अनमोल बनेगा !………स्वाभाविक मृत्यु के बाद भी गाय अत्यंत उपयोगी है ,……प्राचीन समय में गाय के मृत शरीर को हम मिट्टी में कुछ गहरे दबा देते थे ,…दस बारह वर्ष में वह मिट्टी शक्तिशाली खाद में परिवर्तित हो जाती है !……मोटे अनुमान के अनुसार एक गाय के मृत शरीर से प्राप्त खाद एक एकड़ जमीन को तीन चार वर्षों तक पर्याप्त पोषण दे सकती है !….
. वेसे आजकल हम देखते है जगह जगह गोशाला का निर्माण हुआ है एक अच्छा व सराहनिय प्रयास है ! भारतीय गायों के संवर्धन के विशेष प्रयास होने चाहिए ! गाँवों में सामुदायिक भारतीय गौशालाएं खोलने के लिए सरकार को जमीन और ब्याजमुक्त ऋण अनुदान देना चाहिए ! जमीन के अभाव में हम जंगलों का प्रयोग कर सकते हैं !…….गौशालाओं के लिए जंगली जमीन सशर्त पट्टे पर दी जा सकती है !……..न्यूनतम पेड़ उगाने की जिम्मेदारी गौशाला प्रबंधन की होगी !…..हम जंगलों से अधिक मूल्यवान वनस्पतियाँ भी उगा सकते हैं !….
अब बछड़ों की बारी !………अंधमशीनी युग में बैल उपेक्षित हो चुके हैं ,…..गाँवों में बिरले किसान ही अब बैल पालते हैं ,…यद्यपि बैलों की जुताई को सभी एकमत से सर्वश्रेष्ठ मानते हैं ,…लेकिन श्रम की अधिकता और चारे की समस्या से हम बैलों से मुंह मोड़ रहे हैं !…….हम बैलों से अन्य उपयोगी कार्य भी ले सकते हैं ,…..उदहारण स्वरुप …..बैलचालित आटाचक्की मानवता के लिए अत्यंत उपयोगी होगी !….मशीनी आटाचक्की में अनाज के तमाम सूक्ष्म पौष्टिक तत्व जल जाते हैं ,……बैलों से आटा पिसाई यदि पांच गुनी अधिक हो तो भी यह लाभदायक ही होगी !………… बैलपालकों को कुछ प्रोत्साहन राशि भी अवश्य देनी चाहिए !…..
अंततः ,…….भारतीय गाय हमारी आदिम पालक माता है ,……उसके समुचित पालन प्रबंधन प्रयोग से मानवता का बहुत विकास संभावित है …..अनुपयोगी बछड़ों का उपयुक्त उपयोग करने में हमारी भलाई है अनमोल भारतीय गाय के लिए सार्थक पहल सरकार को करनी चाहिए ……सरकार और समाज के समन्वित प्रयासों से हम भारतीय गाय माता को पुनः उसकी आदरणीय गरिमा प्रदान कर सकते हैं !
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )
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