Tuesday, 16 January 2018

चार स्तम्भ पर ही हमारा लोकतंत्र टिका हुआ है फिर लोकतन्त्र खतरे मे केसे ?

लोकतंत्र खतरे में है ---- यह शब्द निश्चित तौर पर किसी न्यायाधीश के नहीं हो सकते है. हमारे देश में लोकतंत्र के 4 स्तम्भ माने जाते है.
1 संसद
2 न्यायपलिका
3 कार्यपालिका
4 मीडिया
इन 4 स्तम्भ पर ही हमारा लोकतंत्र टिका हुवा है.अब चिंतनीय व मननीय विषय है  किसी न्यायाधीश को उसके मनपसंद का केस ना मिलाने से हमारे देश का लोकतंत्र कैसे खतरे में आ गया है ? यह इन चार न्यायाधीशों से पूछा जाना चाहिए. वैसे हमारे देश में आम जनता न्यायाधीशों से कुछ पूछ ले तो कोर्ट की अवमानना के जुर्म में आपको जेल में डाला जा सकता है !
इन 4 न्यायाधीशों ने इसे जनता को अपने मामले का फैसला देने को कहा है. जबकि जनता का देश के न्यायाधीशो के मसलो से कोई सरोकार नहीं है ना ही वो इन्हे चुनती है.जब न्यायाधीश आपस में बैठ कर खुद ही न्यायाधीश चुन लेते है तब जनता से नहीं पूछते. ना ही कभी करोड़ो पेंडिंग मुकदमो के लिए कभी प्रेस कॉन्फ्रेंस करते है. इन्हे तब लोकतंत्र खतरे में नहीं लगता? वो दिन भी आयेगा जब कभी जनता इनसे अपने बर्बाद समय और पैसे के बारे में पूछेगी.
इन 4 न्यायाधीशों ने अपने स्वार्थ के लिए न्यायालय की गरिमा को अपूर्णनीय क्षति पहुंचाई है.यह बाकि न्यायाधीशों को दुष्चरित्र साबित करना चाहते है.यह अपने नायक और बाकि 20 न्यायाधीशो को खलनायक बनाना चाहते है.लेकिन सोशल मीडिया के इस दौर में अब यह इतना आसान नहीं रहा है और जनता के पास सही जानकारी और उद्देश्य पहुंच रहे है.इन न्यायाधिशों को अब अपने को पदमुक्त कर लेना चाहिए. इनकी विश्वसनीयता अब संदेह के घेरे में है और इनके हर फैसले पर अब सवाल उठेंगे.
एक बात आप के ध्यान मे होगी की एक दलित न्यायाधीश जस्टिस कर्णन ने भी इनके खिलाफ आवाज उठायी थी लेकिन इस गैंग ने उनके साथ बुरा बर्ताव कर उनको न्यायिक कार्य से मुक्त कर दिया गया था.”लोकतंत्र खतरे में है’ यह जुमला अब सरकार विरोधी का प्रिय नारा हो गया है जिसकी आड़ में यह खानदानी गुलामी को छुपाना चाहते है.हक़ीक़त यह है की अब “खानदानी गुलामी” खतरे में है.
 लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )  

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