Tuesday, 16 January 2018

चार स्तम्भ पर ही हमारा लोकतंत्र टिका हुआ है फिर लोकतन्त्र खतरे मे केसे ?

लोकतंत्र खतरे में है ---- यह शब्द निश्चित तौर पर किसी न्यायाधीश के नहीं हो सकते है. हमारे देश में लोकतंत्र के 4 स्तम्भ माने जाते है.
1 संसद
2 न्यायपलिका
3 कार्यपालिका
4 मीडिया
इन 4 स्तम्भ पर ही हमारा लोकतंत्र टिका हुवा है.अब चिंतनीय व मननीय विषय है  किसी न्यायाधीश को उसके मनपसंद का केस ना मिलाने से हमारे देश का लोकतंत्र कैसे खतरे में आ गया है ? यह इन चार न्यायाधीशों से पूछा जाना चाहिए. वैसे हमारे देश में आम जनता न्यायाधीशों से कुछ पूछ ले तो कोर्ट की अवमानना के जुर्म में आपको जेल में डाला जा सकता है !
इन 4 न्यायाधीशों ने इसे जनता को अपने मामले का फैसला देने को कहा है. जबकि जनता का देश के न्यायाधीशो के मसलो से कोई सरोकार नहीं है ना ही वो इन्हे चुनती है.जब न्यायाधीश आपस में बैठ कर खुद ही न्यायाधीश चुन लेते है तब जनता से नहीं पूछते. ना ही कभी करोड़ो पेंडिंग मुकदमो के लिए कभी प्रेस कॉन्फ्रेंस करते है. इन्हे तब लोकतंत्र खतरे में नहीं लगता? वो दिन भी आयेगा जब कभी जनता इनसे अपने बर्बाद समय और पैसे के बारे में पूछेगी.
इन 4 न्यायाधीशों ने अपने स्वार्थ के लिए न्यायालय की गरिमा को अपूर्णनीय क्षति पहुंचाई है.यह बाकि न्यायाधीशों को दुष्चरित्र साबित करना चाहते है.यह अपने नायक और बाकि 20 न्यायाधीशो को खलनायक बनाना चाहते है.लेकिन सोशल मीडिया के इस दौर में अब यह इतना आसान नहीं रहा है और जनता के पास सही जानकारी और उद्देश्य पहुंच रहे है.इन न्यायाधिशों को अब अपने को पदमुक्त कर लेना चाहिए. इनकी विश्वसनीयता अब संदेह के घेरे में है और इनके हर फैसले पर अब सवाल उठेंगे.
एक बात आप के ध्यान मे होगी की एक दलित न्यायाधीश जस्टिस कर्णन ने भी इनके खिलाफ आवाज उठायी थी लेकिन इस गैंग ने उनके साथ बुरा बर्ताव कर उनको न्यायिक कार्य से मुक्त कर दिया गया था.”लोकतंत्र खतरे में है’ यह जुमला अब सरकार विरोधी का प्रिय नारा हो गया है जिसकी आड़ में यह खानदानी गुलामी को छुपाना चाहते है.हक़ीक़त यह है की अब “खानदानी गुलामी” खतरे में है.
 लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )  

Monday, 15 January 2018

मेरे जन्म दिन पर शुभकामना हेतु - आप सभी दोस्तों का मैं आभार प्रकट करता हूँ

मेरे जन्म दिन पर आप सभी दोस्तों का मैं आभार प्रकट करता हूँ ----इस दिवस को आप सबने अपने प्यार से यादगार बना दिया ..आपके स्नेह का तहे दिल से शुक्रियां अदा करता हूँ --यह प्यार हमेशा बनाए रखना यही अपेक्षा करता हूँ :--
आज मन में यह ख्‍याल आ रहा है कि खुशियां मनाऊं या गम....?
आज जन्‍मदिन है मेरा। उम्र एक साल बढ गई.... या कम हो गई....., क्‍या कहूं, क्‍या समझूं । वैसे जन्‍मदिन को उत्‍साह के रूप में मनाया जाता है। जश्‍न किया जाता है इस दिन...... पर क्‍या दूसरा पहलू यह नहीं कि जितनी उम्र ऊपरवाले ने लिखी है उसमें एक साल कम हो गए.........!
खैर...... जीवन जितना भी है, उसे उत्‍साह के साथ जीना चाहिए, और ये कोशिश मैं हमेशा करता हूं। उम्र कम हुई या बढी इस चिंता को छोड ये तो सोचा ही जा सकता है आज के दिन कि अब तक क्‍या खोया और क्‍या पाया....? काफी कुछ पाया है तो काफी कुछ खोया भी है मैंने अपने अब तक के सफर में। जन्‍मदिन पर आज एक बार फिर आंखे नम हो गई हैं, उसे याद कर जिसने मुझे इस दुनिया में लाया। मेरी मां व मेरे पिता । मैं दुनिया में उनसे सबसे ज्‍यादा प्‍यार करता हूं और सुबह उठने के साथ ही माँ व पिता का आशीर्वाद लिया ! ............ माँ पिता का आशीर्वाद मेरे चार धाम कि यात्रा का सहज अनुभव हुआ !
रात्रि 12 बजे बच्चो व बहनो ने जन्मदिवस पर विश किया ! पत्नी ममता ने एक सुंदर उपहार दिया ! मेरे लिए उसका उपहार से ज्यादा उसकी मुस्कान है उसका प्यार ही मेरा जीवन है ! मेरी स्वर्गस्थ पत्नी कुसुम को मेने हमेशा साथ महसूस किया है ! उसका प्यार हर जन्मदिन पर ही नही हर पल महसूस करता हु ! मेरे बच्चे व मेरी पत्नी ममता का प्यार भी मुझे हर पल एक नयी खुशी प्रदान करती है ! किसी महापुरूष ने कहा है, हम जब पैदा होते हैं तो हम रोते रहते हैं पर सारी दुनिया हंसती है, हमें अपने जीवनकाल में ऐसे काम करने चाहिए कि जब हम मरें तो हम हंसते रहें पर सारी दुनिया रोए........। आप सबकी दुआएं चाहिए कि मैं अपने जीवन में ऐसे कर्म कर सकूं........ जीवन मे परहित , सेवा , बेसहारे का सहारा बन सकु यही मेरी दिल की तमन्ना है ! परमेश्वर ने मुझे जो दिया उससे मे संतुष्ट हु ! ज्यादा मुझे चाहत नहीं ! सुबह मंदिर गया दादा नाकोड़ा पार्श्वनाथ के दर्शन किए ! गुरुदेव आचार्य श्री सूर्यसागर जी से कॉल करके से आशीर्वाद लिया ! मेरे लिए इससे बड़ा क्या आशीर्वाद हो सकता है ओर जब फेसबूक व व्हट्स अप पर देखा मुझे बहुत से मित्रो , भाईयो , बहनो , सखीयो , मेरे अनुज व अग्रज आदरणीय ने शुभकामना प्रेषित की ! मेसेंजर व व्हट्स अप अनगिनत मेसेज आए हुए थे ! कुछ बहनो व भाइयो ने लंबी उम्र की दुआ दी उन्हे मे जबाव नही दे पाया इस संदेश के माध्यम से सभी का आभार ज्ञापित करता हु ! एक बहन ने मुझे गत वर्ष जन्मदिवस पर नित्य मंदिर जाने का आदेश दिया तब से नित्य सुबह मंदिर जाता हु बड़ा शुकुन मिलता है ! आज फिर उस बहन ने एक प्रतिज्ञा करायी अपनी किसी प्रिय वस्तु का त्याग करो यह भी कोशिश करूंगा ! आज मुझे बड़ी खुशी होती है मेरे अनंत मित्रो की सूची मे बहुत से मित्र से मेरे वेचारिक मतभेद होते है ! पर कोई ऐसा मित्र नहीं जिससे मतभेद है मगर मनभेद नहीं ! जब भी बात होती है एक प्यार व अपनत्व से शायद इससे ज्यादा बड़ी अमूल्य निधि मेरे लिए ओर कोई नहीं हो सकती ! आप सभी भाइयो , बहनो , मित्रो , सखियो , अनुज व अग्रज का प्यार अपनत्व सदा बना रहे ! यही कामना
जन्‍मदिन के अवसर पर अपनी एक पुरानी कविता प्रस्‍तुत कर रहा हूं....
मेरे जीवन का
एक वर्ष और
बीत गया....,
धूमिल छवि
जिसकी
है मेरे पास.....।
थोडी खुशियां, थोडे गम
कहीं जीत, कहीं हार
यही तो है,
जिनके साए में
कट जाती है
जिंदगी.......।
एक स्‍वच्‍छंद आकाश
और है मेरे पास,
जिसमें लिखना है
मुझे अपना कल,
अपना आने वाला कल
उस कल को
खुशगवार बनाएगी
तुम्‍हारी,
सिर्फ तुम्‍हारी
दुआएं ......................
आपका अपना
उत्तम जैन (विद्रोही )
प्रधान संपादक
विद्रोही आवाज

Saturday, 13 January 2018

आपका अधिकार ओर कर्तव्य - प्रजातन्त्र

आप हमेशा यह कहते है कि हम प्रजातंत्र में रहते हें और इसके लिए भारतीय संविधान हमे अभ्व्यक्ति की आज़ादी देता है. प्रजातंत्र के अंतर्गत हमें इस बात की आज़ादी है कि अपनी विचारधारा को एक दुसरे को बताएं और अपने विचारों के पुष्टि के लिए तर्क वितर्क करें.
प्रजातंत्र ऐसी व्यवस्था है जिसमे सरकार का गठन जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से होता है. प्रजातंत्र का दूसरा नाम लोकतंत्र है – जिसका अर्थ है आम जनता द्वारा संचालित शाशन व्यवस्था. ऐसी व्यवस्था के अंतर्गत नागरिक अधिकार तथा सकारी व्यवस्था चलने की प्रणाली की दिशा और निर्देश संविधान में समाहित है.
हम कौन सा धर्म मानते हें कहाँ पूजा अर्चना करते हें इस में कोई रोक टोक नहीं है. प्रजातन्त्रनात्मक प्रणाली की सरकार इस कारण सभी धर्मों को बराबर समझती है. जब सभी धर्म एक समान सरकारी मान्यता रखते हें तो इस प्रकार की सरकारी व्यवस्था धर्म निरपेक्ष समझी जाती है. इस प्रकार भारत का संविधान धर्म निरपेक्ष है. यहाँ यह भी साफ़ हो जाना चाहिए कि प्रजातंत्र के अंतर्गत हमे अपनी ज़िन्दगी स्वतन्त्रता के साथ भारतीय संविधान के दायरे में रहने की आज़ादी है. यहाँ उल्लेखनीय है कि हम स्वतंत्र हें अपना व्यवसाय चुनने में.
अभिव्यक्ति धर्म चयन व्यवसाय तथा अन्य सम्बंधित लोकतंत्रात्मक स्वतन्त्रता के साथ साथ हमारा दायित्व या कहें कि कर्त्तव्य भी बनता है और यह भी संवैधानिक रूपरेखा में समाहित है. हमे कोई भी काम नहीं करना है जिससे समाज में शान्ति भंग होने की संभावना है. इसका साफ़ मतलब यह है कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता हमें अभद्र भाषा प्रयोग करने की इजाज़त नहीं देती.
बहुत अफ़सोस की बात है कि पिछले कई वर्षों से समाज में अभद्रता एवं क्रूरता का प्रवेश हो गया है. भारतीय जनता एक दुसरे के प्रति अभी भी आपसी सद्भाव तथा आदर का भाव रखती है, स्पष्ट रूप से क्रूरता एवं अभद्रता का अनुभव और अवलोकन हम राजनीतिक गलियारों में करते हें. राजनीतिक द्लों की विचारधारा का भेदभाव एक दुसरे के प्रति अभद्रता के साथ दर्शाया जाता है. हम राजनेताओं से इस बात की आशा करते हें कि एक दूसरे के साथ विचारधारा के फर्क का एहसास अभद्र भाषा का इस्तेमाल से न करें. पूरा देश इस प्रक्रिया से असमंजस में है और इसकी भर्त्सना करता है जब एक राजनीतिक दल या समूह दूसरे राजनीतिक दल के नेताओं के लिए अभद्र भाषा या अपशब्द का प्रयोग करता है. चाहे अभद्रता देश के अंदर अपने भाषणों वक्तब्यों या प्रेस को दिए जाने वाले विवरणों में हो या देश से बाहर NRI समुदाय को संबोधित करने में देश की किसी भी राजनीतिक पार्टी के बारे में अनुचित, असभ्य अभद्र और ग़ैर अनुशाषित शब्दों का प्रयोग किया जाए यह अशोभनीय है और देश किसी कीमत पर ऐसे व्यवहार का सहन नहीं कर पायेगा. ऐसे बचकाना बोल चाल से शिष्ट्ता का हनन होता है और देश कि मर्यादा एवं गरिमा को ठेस पहुँचता है.
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता जब देश की मर्यादा, देश के सम्मान के विपरीत हो तब इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग समझा जायेगा और संविधान इस प्रकार की स्वतन्त्रता हमे नहीं प्रदान करता है.
आपने यह भी पाया होगा कि अभिव्यक्ति की संवैधानिक स्वतन्त्रता के नाम पर लोग धार्मिक असंतुलन का वातावरण भी देश में फैलाना चाहते हें. इससे किसी को भी एतराज़ नहीं है कि भारत में अपना धर्म चुनने और अपने धर्म के मुताबिक व्यक्तिगत जीवन में इसका आचरण करने कि आज़ादी है. पर धार्मिक आचरण किसी भी अन्य व्यक्ति के जीवन में कठिनाई पैदा करना या संविधान के अंतर्गत जीवन निर्वाह नहीं करने देना संविधान के अनुकूल नहीं है. जहां संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, अपने जीवन में धर्माचार की स्वतंत्रता देता है वहाँ संविधान हम सभी से नागरिक कर्तव्यों और सम्बन्धित दायित्वों के पालन की भी अपेक्षा करता है.
यह हमारी सबसे अपेक्षा है कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के नाम पर किसी भी दूसरे का अपमान न करें. जब कोई भी राजनीतिक नेता विदेश जाकर अपने देश की मर्यादा और गरिमा को ठेस पहुँचाये उस नेता को इस आपत्तिजनक स्तिथि से अवगत कराएं और यदि जिद करे तब उसे या उसके राजनीतिक दल को तथा उसके सहयोगी दलों को भी वोट न दें. यदि आप अपने देश की गरिमा और मर्यादा को ऐसे नेताओं से बचाना चाहते हें तब निदान मात्र उन्हें वोट न देकर सत्ता से उन्हें दूर रखने में ही है.

Tuesday, 9 January 2018

तीन तलाक राजनीतिक प्रदूषण की भेंट

मुश्लिम देशों में तीन तलाक को प्रतिबिंबित किया जा चुका है तो भारत जैसे देश में यह प्रतिबंध क्यों नही लागू होना चाहिए ? यह बहुत ही गम्भीर सवाल है जिसका उत्तर शायद सरकार के पास न हो, लेकिन इतना तो तय है कि तीन तलाक को प्रतिबिंबित करने के लिए पिछली सरकारों ने कोई कदम नहीं उठाया क्योकिं उनको सबसे बड़ा डर था कि मुश्लिम वोटों से हाथ न धोना पड़े। उनको मुस्लिम मतदाता के फिसलने का डर सता रहा था और यही वोट की राजनीति ने कई दशकों से मुश्लिम महिलाओं को नर्क जैसा जीवन जीने के लिए मजबूर कर दिया , अगर यह कानून पहले बन गया होता तो शायद कितनी महिलाएं आज इस नरकीय जिंदगी जीने के लिए बाध्य नहीं होती और इनकी भी जिंदगी खुशहाल होती, लेकिन वोट की राजनीति और धर्म के ठेकेदारों ने ऐसा होने नहीं दिया, और इनकी प्रदूषित राजनीति में पचढ़े में फस कर रह गया। 
आज मुश्लिम महिलायों को तीन तलाक की पीड़ा जो पुरुषों के द्वारा दी जाती है उसको झेलना हर महिला के वश की बात नहीं, यह एक ऐसी पीड़ा है जो सांस रहते ही मृत के समान कर देता है। तलाक का दंश इतना खतरनाक है कि इसकी पीड़ा वही बता सकता है जो इस दौर से गुजर रहा हो, यही कारण है कि आज मुस्लिम महिलाएं भारत सरकार के कानून का पुरजोर समर्थन कर रही है लेकिन कुछ मुस्लिम धर्मगुरु और राजनेता इस कानून का विरोध कर रहे है।इसमें भी उनका स्वार्थ छिपा पड़ा है जो राजनीतिक रोटी सेंकने के चक्कर में है।मुश्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक, 2017 को लोक सभा ने जिस प्रकार से पास कर दिया, यह राज्यसभा में पास होने के बाद यह राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ ही कानून बन जाता लेकिन जिस प्रकार से राज्यसभा में राजनीति शुरू हो गयी यह बहुत ही दुखद है कि इस बिल को राजनीति की भेंट चढ़ा दिया गया। इसको राज्यसभा में पास होने से रोक कर विपक्ष ने इतना तो बता दिया कि हम मुस्लिम वोट की राजनीति करते है तभी इस बिल का विरोध कर रहे है जिससे कि मुस्लिम मतदाता नाराज न हो। इस कानून के बन जाने से एक साथ तीन तलाक देने वालों के लिए यह काफी भारी पड़ जाता,जिसमें तीन साल का कारावास का प्रावधान है। इस कानून को राज्यसभा में सभी विपक्ष दल के विरोध से यह विधेयक कानून का शक्ल नहीं ले पाया। इसके कानून बनने के साथ ही महिलायों के साथ वर्षो से चला आ रहा शोषण का चक्र विराम कर जाता लेकिन विपक्ष की प्रदूषित राजनीति के भेंट चढ़ गया तीन तलाक का मामला। 

Wednesday, 3 January 2018

दलित आंदोलन - बीमारी का इलाज तभी संभव जब वो बीमारी मरीज द्वारा स्वीकार कर ली जाए

बीमारी का इलाज तभी संभव होता है जब वो बीमारी मरीज द्वारा स्वीकार कर ली जाती है. इस बात को कौन अस्वीकार कर सकता हैं कि नेताओ की वजह से आज देश जातिवाद के घोर दलदल में धंसता जा रहा है? सहरानपुर के शब्बीरपुर गाँव में दलित और राजपूत हिंसा की आंच अभी ठीक से ठंडी भी नहीं हुई थी कि अचानक महाराष्ट्र के पुणे से शुरू हुआ जातीय हिंसा का दौर मुंबई और कई अन्य शहरों तक पहुंच चुका है. जगह-जगह पथराव और आगजनी का दौर जारी है, मुंबई के उपनगरों चेंबूर, कुर्ला, मुलुंड और ठाणे  में पथराव और आगजनी की कई घटनाएं हुईं. कई जगह दुकानों और ऑफिसों को आग के हवाले कर दिया गया.
ऐसे में जानना जरूरी है कि ये सारा विवाद है क्या और क्यों? अचानक महाराष्ट्र प्रतिशोध की ज्वाला में धधकने लगा है? महाराष्ट्र के पुणे में यह सारा विवाद अंग्रेजों और पेशवाओं के बीच हुए युद्ध के 200 साल पूरे होने को लेकर हुआ है. जिसमें एक जनवरी 1818 में अंग्रेजों ने दलितों की सहायता से पेशवा द्वितीय को शिकस्त दे दी थी. पुणे के कोरेगांव के जय स्तंभ पर हर साल यह उत्सव मनाया जाता है. दलित इसे शौर्य दिवस के तौर पर मनाते हैं, और मराठाओं की ओर से हर साल इसका छुटपुट विरोध होता रहा है. लेकिन इस साल युद्ध के 200 साल पूरे होने पर दलितों की ओर से इस बार भव्य आयोजन किया जा रहा था जिसमें 5 लाख से ज्यादा लोगों के जुटने की बात की जा रही है. खास बात ये है कि यह देश का इकलौता युद्ध है जिसमें अंगेजों की जीत का जश्न मनाया जाता है.
जातिगत हिंसा की बात करें तो बीते पिछले कुछ महीनों में गुजरात में पटेल आन्दोलन हुआ ये भी जाति के नाम पर था. हरियाणा में जाट आन्दोलन हुआ था, सरकारी और निजी संपत्तियों को आग के हवाले किया गया. इसमें भी आगजनी और हिंसा का वही तांडव दोहराया गया जिसके बाद हार्दिक पटेल नाम से एक नेता सामने आये. इसके बाद गुजरात में ऊना से कथित गौरक्षक दलों द्वारा कुछ दलितों की पिटाई के बाद देश में जो हुआ सब जानते है. इस आन्दोलन से जिग्नेश मेवाणी का जन्म हुआ. तो उत्तरप्रदेश में दलित, राजपूत हिंसा  महाराणा प्रताप की हिंसक शोभायात्रा के बाद भी एक दलित नेता चन्द्रशेखर रावण का जन्म भी इसी जातिवाद  की कोख से ही हुआ था.
इस देश में अन्दर ही अन्दर बहुत कुछ हो रहा है. रोहित वेमुला की ‘आत्म-हत्या’ पहले कन्हैया और ‘राष्ट्रवाद’ फिर ऊना कांड, कुछ सुलग रहा है जो कभी-कभी फूटता है तो कभी अंदर-अन्दर ही दहक रहा होता हैं. अभी सब कुछ शांत नहीं होगा अगली आग की तैयारी की जा रही है हाल ही में पांच दिसंबर को कई दलित संगठन अशोक भारती के नेतृत्व में आंध्र प्रदेश भवन में राष्ट्रीय दलित महासभा कर रहे थे इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य शब्बीरपुर गांव के दलितों को न्याय दिलाने के साथ-साथ भीम आर्मी के संस्थापक चंद्र शेखर रावण, शिव कुमार प्रधान, सोनू समेत अन्य की जेल से रिहाई की आवाज को बुलंद करना है. कोरेगांव युद्ध की सालगिरह पर वैसे तो हर साल पंद्रह-बीस हजार लोगों की भीड़ वहां जमा होती थी,लेकिन इस बार तीन-साढ़े तीन लाख लोग कैसे जमा हो गए? क्या ये कोई सोची समझी साजिश थी या महाराष्ट्र को जातीय हिंसा की आग में झोंकने की फुल प्लानिंग की गई? सामाजिक न्याय के बहाने किस तरह एक बाद एक नेता जन्म ले रहे इसे समझना होगा. सामाजिक न्याय के विचार का पानी कथित जातिवादी नेता झोली में लिए चल रहे है, जो कभी बिखरता है तो कभी हिंसा के लाल रंग में मिल जा रहा है. मैंने शब्बीरपुर की घटना के बाद भी पूछा था कि भारत के चुनावी बाजार में राजनीतिक निर्माताओं द्वारा तैयार किए गए और एक दूसरे से आगे बढ़कर दिए जा रहे बयान क्या कभी सामाजिक समरसता का सपना पूरा होने देंगे? मुझे नहीं लगता क्योंकि ऐसी घटनाओं के बाद यह लोग एक-दूसरे के विरुद्ध बड़े मोटे-मोटे शीर्षक देकर लोगों की भावनाएं भड़काते हैं और परस्पर सिर फुटौवल करवाते हैं. एक-दो जगह ही नहीं,कितनी ही जगहों पर इसलिए दंगे हुए हैं कि स्थानीय अख़बारों ने बड़े उत्तेजनापूर्ण लेख लिखे हैं. इस समय ऐसे लेखक बहुत कम हैं, जिनका दिल व दिमाग ऐसे दिनों में भी शांत हो. दूसरा सोशल मीडिया पर भ्रामक प्रचार भी ऐसे माहोल में आग में घी का काम करता दिखाई देता है.
इस जश्न के मूल उद्देश्य उसकी गर्वीली परत हटाकर देखें तो कुछ यूँ देखिये कि आज से 200 साल पहले अंग्रेजों ने दलितों की सहायता से पंडित पेशवाओं को हराया था. शनिवार वाडा में जो अंग्रेजी पताका फहराई गयी थी उसमें दलित समुदाय के लोगों का हाथ था. हालाँकि अब न वो युद्ध जीतने वाले अंग्रेज रहे न म्हार सेना के सिपाही और न ही पेशवा और उनके उच्च पद. लेकिन लोग है कि इतिहास से गौरव और अपमान के कुछ पल बटोरकर, आज के आजाद और संवेधानिक भारत में हिंसा का तांडव मचा रहे है. इसमें कोई एक समुदाय दोषी नहीं बल्कि हर एक वो समुदाय दोषी है जो इतिहास से आज भी जातीय गर्व की भावना ढूंढकर दूसरों को चिढ़ाते है, नीचा दिखाते है. इसमें शनिवार वाडा में शोर्य दिवस मनाने वाले भी उतना ही दोषी है जितना परशुराम जी वो भक्त जो गर्व से उन्हें भगवान का दर्जा देकर सीना ठोकते हुए कहते है कि परशुराम जी ने 21 बार पृथ्वी क्षत्रीय विहीन कर दी थी. यदि हिन्दू समाज में आपसी युद्ध को वो गर्व मानते है तो आज वो दलितों के जश्न से अपमानित क्यों होते है? मेरा उद्देश्य किसी की कमजोर भावनाओं पर वार करना नहीं है पर क्यों न सामाजिक समरसता राष्ट्रीय एकता, अखंडता बनाये रखने के लिए इन एतिहासिक सच्चे झूठे प्रमाणित अप्रमाणित गर्वो को अब पीछे छोड़ दिया जाये? एक नया हिंदुस्तान बनाया जाये वरना ऐतिहासिक गर्व की भावना के चक्कर और वोट की राजनीति में भारत ही इतिहास बनकर रह जायेगा
लेखक - उत्तम जैन