Friday 15 November 2019

लोकतन्त्र खतरे मे - उत्तम जैन ( विद्रोही )


लेखक -उत्तम विद्रोही 
भारत जैसे देश में राजनीति शायद हर क्षेत्र में कामयाबी और रातोंरात अमीर बनने की कुंजी बन गई है. यही वजह है कि हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा की तर्ज पर राजनीतिज्ञों की जमात लगातार लंबी होती जा रही है.मौजूदा हालात में कोई भी राजनीतिक दल भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है. वह चाहे कांग्रेस के नेता, मंत्री और सांसद हों या फिर भाजपा या दूसरे राजनीतिक दलों के. भारत जैसे देश में यह आम धारणा बन गई है कि एक बार सांसद बन जाने पर कम से कम सात पुश्तों के खाने-पीने का इंतजाम हो जाता है. इसलिए इसमें कोई हैरत नहीं होनी चाहिए कि चुनाव आयोग की तमाम पाबंदियों और चुनावी आचार संहिता के बावजूद लोकसभा और राज्यसभा चुनावों में करोड़ों का खेल होता है. तमाम लोग इस भ्रष्टाचार के सभी पहलुओं से अवगत होने के बावजूद चुप्पी साधे बैठे हैं. असली राजनीतिक भ्रष्टाचार की शुरूआत तो यहीं से होती है. तमाम दलों पर मोटे पैसे के एवज में टिकट बेचने के आरोप भी अब आम हो गए हैं. अब जो व्यक्ति पहले मोटी रकम देकर टिकट खरीदेगा और फिर करोड़ों की रकम फूंक कर चुनाव जीतेगा, वह सत्ता में पहुंच कर तो अपनी रकम तो सूद समेत वसूल करने का प्रयास करेगा ही तमाम दलों में ऐसे नेता भरे पड़े हैं जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार और अपराध के दर्जनों मामले लंबित हैं. कार्यपालिका की बात छोड़ दें तो अब न्यायपालिका के दामन पर भी भ्रष्टाचार के धब्बे नजर आने लगे हैं. इस आरोप में अब तक विभिन्न अदालतों के कई जज भी बर्खास्त किए जा चुके हैं.राजनीति और भ्रष्टाचार के इस रिश्ते को खत्म करने के लिए चुनाव संबंधी कानूनों में संशोधन जरूरी है ताकि आपराधिक मामलों वाले लोग चुनाव ही नहीं लड़ सकें.  जिस देश के प्रधानमंत्री से लेकर उसके कई मंत्रियों पर रिलायंस और अडानी से लेकर विभिन्न औद्योगिक घरानों को फायदा पहुंचाने के आरोप लगते रहे हों, वहां नीरा राडिया जैसे सैकड़ों मामले अभी परदे के पीछे छिपे हो सकते हैं. इस मामले में अंकुश लगाने के लिए चुनाव आयोग और संभवतः सुप्रीम कोर्ट को भी पहल करनी पड़ सकती है. हमारे राजनेता तो कम से इस मामले में पहल करने से रहे

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