Wednesday, 29 May 2019

सूरत में हुए हादसे के बहाने जानिए सीरत अपनी21 बच्चे हमेशा के लिए सो गए फिर भी हम नहीं जागेंगे, हैं ना...

एक ज़रूरी आलेख
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सूरत में हुए हादसे के बहाने जानिए सीरत अपनी
21 बच्चे हमेशा के लिए सो गए फिर भी हम नहीं जागेंगे, हैं ना...
"कुछ विषय ऐसे होते हैं जिनपर लिखना खुद की आत्मा पर कुफ्र तोड़ने जैसा है, सूरत की बिल्डिंग में आग...21 बच्चों की मौत...आग और घुटन से घबराए बच्चों को इससे भयावह वीडियो आज तक नहीं देखा....इससे ज्यादा छलनी मन और आत्मा आज तक नहीं हुई....फिर भी लिखूंगी...क्योंकि हम सब गलत हैं, सारे कुएं में भांग पड़ी हुई है। हमने किताबी ज्ञान में ठूंस दिया बच्चों को नहीं सिखा पाए लाइफ स्किल। नहीं सिखा पाए डर पर काबू रख शांत मन से काम करना।"
मम्मा डर लग रहा है...एग्जाम के लिए सब याद किया था लेकिन एग्जाम हॉल में जाकर भूल गया...कुछ याद ही नहीं आ रहा था। पांव नम थे...हाथों में पसीना था...आप दो मिनिट उसे दुलारते हैं...बहलाने की नाकाम कोशिश करते हैं फिर पढ़ लो- पढ़ लो- पढ़ लो की रट लगाते हैं। सुबह 8 घंटे स्कूल में पढ़कर आए बच्चे को फिर 4-5 घंटे की कोचिंग भेज देते हैं। जिंदगी की दौड़ का घोड़ा बनाने के लिए, असलियत में हम उन्हें चूहादौड़ का एक चूहा बना रहे हैं। नहीं सिखा पा रहे जीने का तरीका- खुश रहने का मंत्र...साथ ही नहीं सिखा पा रहे लाइफ स्किल। विपरीत परिस्थितियों में धैर्य और शांतचित्त होकर जीवन जीने की कला नहीं सिखा पा रहे हैं ना और इसके लिए सिर्फ और सिर्फ हम पालक और हमारा समाज जिम्मेदार है। आयुष को पांच साल की उम्र में मैं न्यूजीलैंड ले गई थी...9 साल की उम्र में वापस इंडिया ले आई थी...वहां उसे नर्सरी क्लास से फस्टटेड से लेकर आग लगने पर कैसे खुद का बचाव करें...फीलिंग सेफ फीलिंग स्पेशल ( चाइल्ड एब्यूसमेंट), पानी में डूब रहे हो तो कैसे खुद को ज्यादा से ज्यादा देर तक जीवित और डूबने से बचाया जा सके.... जैसे विषय हर साल पढ़ाए जाते थे। फायरफाइटिंग से जुड़े कर्मचारी और अधिकारी हर माह स्कूल आते थे। बच्चों को सिखाया जाता था विपरीत परिस्थितियों में डर पर काबू रखते हुए कैसे एक्ट किया जाए। ह्यूमन चेन बनाकर कैसे एक-दूसरे की मदद की जाए.....हेल्पिंग हेंड से लेकर खुद पर काबू रखना ताकि मदद पहुंचने तक आप खुद को बचाए रखें....
हम नहीं सिखा पा रहे यह सब....नहीं दे पा रहे बच्चों को लाइफ स्किल का गिफ्ट...विपरीत परिस्थितियों से बचना....कल की ही घटना देखिए...हमारे बच्चे नहीं जानते थे कि भीषण आग लगने पर वे कैसे अपनी और अपने दोस्तों की जान बचाएं....नहीं सीखा हमारे बच्चों ने थ्री-G का रूल ( गेट डाउन, गेट क्राउल, गेट आऊट ) जो 3 साल की उम्र से न्यूजीलैंड में बच्चों को सिखाया जाता है, आग लगे तो सबसे पहले झुक जाएं...आग हमेशा ऊपर की ओर फैलती है। गेट क्राउल...घुटनों के बल चले...गेट आऊट...वो विंडों या दरवाजा दिमाग में खोजे जिससे बाहर जा सकते हैं, उसी तरफ आगे बढ़े, जैसा कुछ बच्चों ने किया, खिड़की देख कर कूद लगा दी... भले ही वे अभी हास्पिटल में हो  लेकिन जिंदा जलने से बच गए। लेकिन यहां भी वे नहीं समझ पा रहे थे कि वे जो जींस पहने हैं...वह दुनिया के सबसे मजबूत कपड़ों में गिनी जाती है...कुछ जींस को आपस में जोड़कर रस्सी बनाई जा सकती है। नहीं सिखा पाए हम उन्हें कि उनके हाथ में स्कूटर-बाइक की जो चाबी है उसके रिंग की मदद से वे दो जींस को एक रस्सी में बदल सकते हैं...काफी सारी नॉट्स हैं जिन्हें बांधकर पर्वतारोही हिमालय पार कर जाते हैं फिर चोटी से उतरते भी हैं...वही कुछ नाट्स तो हमें स्कूलों में घरों में अपने बच्चों को सिखानी चाहिए। सूरत हादसे में बच्चे घबराकर कूद रहे थे...शायद थोड़े शांत मन से कूदते तो इंज्युरी कम होती। एक-एक कर वे बारी-बारी जंप कर सकते थे। उससे नीचे की भीड़ को भी बच्चों को कैच करने में आसानी होती। मल्टीपल इंज्युरी कम होती, हमारे अपने बच्चों को। आज आपको मेरी बातों से लगेगा...ज्ञान बांट रही हूं...लेकिन कल के हादसे के वीडियो को बार-बार देखेंगे तो समझ में आएगा एक शांतचित्त व्यक्ति ने बच्चों को बचाने की कोशिश की। वो दो बच्चों को बचा पाया लेकिन घबराई हुई लड़की खुद को संयत ना रख पाई और .... अच्छे से याद है, पापाजी कहते थे मोना कभी आग में फंस जाओ तो सबसे पहले अपने ऊपर के कपड़े उतार कर फेंक देना, मत सोचना कोई क्या कहेगा क्योंकि ऊपर के कपड़ों में आग जल्दी पकड़ती है। जलने के बाद वह जिस्म से चिपक कर भीषण तकलीफ देते हैं...वैसे ही यदि पानी में डूब रही हो तो खुद को संयत करना...सांस रोकना...फिर कमर से नीचे के कपड़े उतार देना क्योंकि ये पानी के साथ मिलकर भारी हो जाते हैं, तुम्हें सिंक (डुबाना) करेंगे। जब जान पर बन आए तो लोग क्या कहेंगे कि चिंता मत करना...तुम क्या कर सकती हो सिर्फ यह सोचना।
जो बच्चे बच ना पाए, उनके माँ बाप का सोच कर दिल बैठा जा रहा है। मेरे एक सीनियर साथी ने बहुत पहले कहा था...बच्चा साइकिल लेकर स्कूल जाने लगा है, जब तक वह घर वापस नहीं लौट आता...मन घबराता है। उस समय मैं उनकी बात समझ नहीं पाई थी...जब आयुष हुए तब समझ आया आप दुनिया फतह करने का माद्दा रखते हो अपने बच्चे की खरोच भी आपको असहनीय तकलीफ देती है...इस लेख का मतलब सिर्फ इतना ही है कि हम सब याद करे हिंदी पाठ्यपुस्तक की एक कहानी...
जिसमें एक पंडित पोथियां लेकर नाव में चढ़ा था...वह नाविक को समझा रहा था 'अक्षर ज्ञान- ब्रह्म ज्ञान' ना होने के कारण वह भवसागर से तर नहीं सकता...उसके बाद जब बीच मझधार में उनकी नाव डूबने लगती है तो पंडित की पोथियां उन्हें बचा नहीं पाती। गरीब नाविक उन्हें डूबने से बचाता है, किनारे लगाता है। हम भी अपने बच्चों को सिर्फ पंडित बनाने में लगे हैं....उन्हें पंडित के साथ नाविक भी बनाइए जो अपनी नाव और खुद  का बचाव स्वयं कर सकें। सरकार से उम्मीद लगाना छोड़िए ... चार जांच बैठाकर, कुछ मुआवजे बांटकर मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा। कुकुरमुत्ते की तरह उग आए कोचिंग संस्थान ना बदलेंगे। इस तरह के हादसे होते रहे हैं...आगे भी हो सकते हैं....बचाव एक ही है हमें अपने बच्चों को जो लाइफ स्किल सिखानी है। आज रात ही बैठिए अपने बच्चों के साथ...उनके कैरियर को गूगल करते हैं ना...लाइफ स्किल को गूगल कीजिए। उनके साथ खुद भी समझिए विपरीत परिस्थितियों में धैर्य के साथ क्या-क्या किया जाए याद रखिए जान है तो जहान है।
( गणपति सिराने ( गणपति विसर्जन)  समय की एक घटना मुझे याद है। हमारी ही कॉलोनी के एक भईया डूब रहे थे...दूसरे ने उन्हें बाल से खींचकर बचा लिया...वे जो दूसरे थे ना उन्हें लाइफ स्किल आती थी....उन्होंने अपना किस्सा बताते हुए कहा था...कि डूबते हुए इंसान को बचाने में बचानेवाला भी डूब जाता है...क्योंकि उसे तैरना आता है बचाना नहीं...मुझे मेरे स्विमिंग टीचर ने सिखाया है कि कोई डूब राह हो तो उसे खुद पर लदने ना दो...उसके बाल पकड़ों और घसीटकर बाहर लाने की कोशिश करो....यही तो छोटी-छोटी लाइफ स्किल हैं।

Monday, 27 May 2019

तक्षशिला मोत का तांडव ओर आपकी ज़िम्मेदारी

सूरत तक्षशिला मोत का तांडव ओर आपकी ज़िम्मेदारी इस विषय पर बहुत कुछ नही लिख पाऊँगा क्यूकी इस सदमे से मेरी कलम हाथ मे लेते हुए हादसे की तस्वीर देखते हुए कांप रही है ! इतना झकझोर देने वाला हादसा मासूम बच्चो की राख़ हुई लाशे , आग के बाद कूदते बच्चे ओर कुछ की कूदने से मोत तो कोई घायल और अगर कहु तो आम नागरिको के लिए यह
विषय पुराना भी हो सकता है. मगर जिन परिवार ने अपने मासूम बच्चो को खोया है वो परिवार तो इस लम्हे को याद कर कर के नित्य मरेंगे अब प्राकृतिक आपदा अगर आ जाती है तो हम इसे प्रकृति की सजा भी मान सकते है मगर प्रकृति द्वारा रचित बुद्धिजीवी मनुष्यो जिन्हे नरभक्षी कहु तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी जिनकी लापरवाही हो या भ्रष्ट शेली के कारण इन मासूमो की जान गयी जो कुछ होना था, हो चुका है. सभी नेता, मीडिया और आम दर्शक बुद्धिजीवी सभी अपनी अपनी अपनी राय रख चुके हैं. फिर भी अगर कुछ बाकी है या इस पर मीमांषा/विवेचना करनी है तो मैं भी अपनी राय रखने जा रहा हूँ. आप सभी अपनी राय रखने के लिए स्वतंत्र हैं. मेरा मकसद सिर्फ यही है की कैसे इस तरह के हादसे को रोका जाना चाहिए और इस पर सिर्फ राजनीति नही हो जिनका अपराध है निष्पक्ष रूप से जांच हो बिल्डर , क्लास संचालक , महानगर पालिका के अधिकारी ,अग्निशमन दल के अधिकारी जिनकी लापरवाही ओर भ्रस्टाचार के कारण जो हादसा हुआ उन्हे सख्त सजा मिले !
गुजरात सरकार सिर्फ सवेदना व्यक्त करके , जांच के आदेश देकर या 4 लाख का मुआवजा देकर ज़िम्मेदारी से मुक्त नही हो सकती बिना देर किए मासूमो को न्याय मिले उनके परिवार को सरकारी नोकरी या आजीवन पेंशन दी जाये सभी जिम्मेदार अफसरो को सस्पेंड करने से ही नही उन्हे सजा भी मिले जिससे आगे हर अधिकारी व बिल्डर भविष्य मे लापरवाही न करे ओर न चंद पेसो के लिए किसी परिवार का चिराग न बुझाये ! आम जनता जागरूक हो अवेध क्लासेस या निर्माण हो निडरता के साथ अपनी शिकायत दर्ज कराये ओर उस शिकायत का फोलोअप भी करे की उस विभाग से जुड़े अधिकारी आपकी शिकायत पर कार्यवाही कर रहे है की नहीं ! आम जनता को जागरूक होना होगा ! आपकी जागरूकता आपका कर्तव्य है
इस हादसे मे मृतक सभी भावाजली
उत्तम जैन ( विद्रोही )

Friday, 24 May 2019

सूरत शहर में आगजनी की घटना का जिम्मेदार कौन ?

सूरत शहर में आगजनी की आज की घटना --😢
अग्निशमन दल के पास सुविधा की कमी या अग्निशमन दल की लापरवाही जांच का विषय है हीरा नगरी  व टेक्सटाइल नगरी पूरे देश नही विश्व में अपनी अलग पहचान है । आज इस आगजनी में मासूमो  की जान चली गयी इसके जिम्मेदार कौन? सरकार , प्रशासन या अग्निशमन दल की लापरवाही .. सिर्फ मुआवजा इस नुकसान की भरपाई नही कर सकता। इस हादसे का असली जिम्मेदार को सजा मिले अगर सुविधा की कमी  तो सरकार व प्रशासन जिम्मेदारी ले और इस्तीफा दे अग्निशमन दल की लापरवाही है तो तुरंत पदच्युत किया जाए
नॉट -- हमे अंदर से खोखला होना मंजूर है लेकिन बाहर से हम #राष्ट्रवादी है। #राष्ट्रवाद की दूसरी कड़ी की प्रथम क़िस्त उन मासूम बच्चों की गई है। जो भविष्य के सितारे हो सकते थे। किंतु #भ्रष्टाचार के चलते #गुजरात #सूरत शहर के कोचिंग सेंटर में लगी आग से 19 बच्चों की जिंदगी ही समाप्त हो गई।

हम लोग बहुत बड़ा तो सोचते है लेकिन कभी छोटी से छोटी चीज को लेकर कभी गंभीरता से नही सोचते।

आज अगर उस कोचिंग सेंटर में #कानून के नियमों की पालना हो रही होती तो शायद ये बच्चे जिंदा होते, लेकिन क्या करे हम #राष्ट्रवाद के नाम पर #व्यवस्थाओं से समझौता कर जिंदगी से भी समझौता कर सकते है।

किसी भी ऑफिस, स्कूल, कोचिंग सेंटर, दुकान आदि सार्वजनिक स्थानों पर आग लगने की स्थिति में #सुरक्षा उपकरणों का कानून पूरे देश मे लागू है।
लेकिन कुछ चन्द मुनाफाखोर उन उपकरणों में लगने वाले खर्च से बचने के लिए #प्रशासन #नेताओ से साठगांठ कर उन पेसो को तो बचा लेते है लेकिन उनकी इस सोच की वजह से मानवता शर्मशार हो जाती है।
उत्तम विद्रोही जैन