Monday, 23 December 2019

नागरिकता संशोधन कानून पर आखिर इतना हंगामा क्यों ?

  अनजाने में आप भारत जैसे शांतिप्रिय देश और दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था को पीछे धकेलने की साजिश का हिस्सा तो नहीं बन रहे हैं
                         
नागरिकता संशोधन कानून पर आखिर इतना हंगामा क्यों ? भारत सरकार की तरफ से संसद में और संसद के बाहर यह बार-बार स्पष्ट किया जा चुका है कि इस कानून से किसी भी भारतीय के मूलभूत अधिकारों पर जरा-सा भी विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा। हम सवाल पूछना चाहते हैं इस कानून के नाम पर देश की कानून व्यवस्था बिगाड़ने वालों से कि क्या आपने इस कानून को पढ़ा है ? अराजक तत्वों के बहकावे में आकर भीड़ का हिस्सा मत बनिये, पहले इस कानून को समझिये। आइए  कानून को लेकर आपके मन में उमड़-घुमड़ रहे सभी सवालों के जवाब आपको बेहद आसान तरीके से समझते  हैं।
 
प्रश्न 1- क्या नागरिकता संशोधन कानून भारतीयों खासकर किसी भी हिंदू या मुस्लिम को प्रभावित करता है ?
 
उत्तर- नहीं। नागरिकता कानून में हुए संशोधन का किसी भी भारतीय नागरिक के साथ किसी भी तरह से कोई लेना-देना नहीं है। भारतीय नागरिकों को भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का इस कानून के जरिये किसी प्रकार का हनन नहीं होगा। यह कानून किसी भी भारतीय नागरिक चाहे वह हिंदू हो, मुस्लिम हो, सिख हो, बौद्ध हो, ईसाई हो या अन्य किसी धर्म का पालन करने वाला हो, किसी के भी अधिकार को जरा-सा भी प्रभावित नहीं करता है।
 
प्रश्न 2- नागरिकता संशोधन कानून किस पर लागू होता है ?
 
उत्तर- नागरिकता संशोधन कानून 2019 पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर पलायन कर भारत आये हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई विदेशियों के लिए प्रासंगिक है। यहां यह बात ध्यान रखनी होगी कि इन धर्मों के लोगों ने अगर सिर्फ धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर भारत में 31.12.2014 तक या उससे पहले प्रवेश किया है तो ही उन्हें नागरिकता मिलेगी।
 
प्रश्न 3- क्या पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से गैर-कानूनी रूप से भारत आए मुस्लिम अप्रवासियों को नागरिकता संशोधन कानून के अंतर्गत वापस भेजा जाएगा?
 
उत्तर- जी नहीं। नागरिकता संशोधन कानून का भारत में वैध या अवैध रूप से रह रहे किसी भी विदेशी को भारत से बाहर भेजने से कोई लेना-देना नहीं है। यहाँ आपको एक बात समझनी होगी कि किसी भी विदेशी नागरिक को देश से बाहर भेजने, चाहे वह किसी भी धर्म या देश का हो, इसकी प्रक्रिया फॉरनर्स ऐक्ट 1946 अथवा पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) ऐक्ट 1920 के तहत की जाती है। ये दोनों कानून, सभी विदेशियों- चाहे वे किसी भी देश अथवा धर्म के हों, देश में प्रवेश करने, रिहाइश, भारत में घूमने-फिरने और देश से बाहर जाने की प्रक्रिया को देखते हैं। 
 
अगर किसी विदेशी घुसपैठिये को देश से बाहर निकालना हो तो उसकी क्या प्रक्रिया होती है ? इसे भी समझिये। नागरिकता संशोधन कानून को एक साइड रख दीजिये यह कानून किसी को भी देश से नहीं निकाल सकता। हम यहाँ बात फॉरनर्स ऐक्ट 1946 अथवा पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) ऐक्ट 1920 की कर रहे हैं। इन दोनों कानूनों के तहत सामान्य निर्वासन की प्रक्रिया सिर्फ गैरकानूनी रूप से भारत में रह रहे विदेशियों पर लागू होती है। अवैध रूप से आये लोगों को देश से बाहर भेजने की प्रक्रिया भी तब शुरू होती है जब कोई व्यक्ति द फॉरनर्स ऐक्ट, 1946 के तहत ‘विदेशी’ साबित हो जाये। यहाँ एक बात और समझने की जरूरत है कि यहां सिर्फ केंद्र की ही नहीं चलती बल्कि राज्य सरकारों और उनके जिला प्रशासन के पास फॉरनर्स ऐक्ट के सेक्शन 3 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) ऐक्ट 1920 के सेक्शन 5 के तहत केंद्र सरकार द्वारा प्रदत्त शक्तियां होती हैं, जिससे वह गैरकानूनी रूप से रह रहे विदेशी की पहचान कर सकती हैं, हिरासत में रख सकती हैं और उस घुसपैठिये को उसके देश भेजने को केंद्र से कह सकती हैं।
 
प्रश्न 4– पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को इस कानून से कैसे फायदा होगा ?
 
उत्तर- पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न झेलने के बाद भारत आये शरणार्थियों के पास यदि पासपोर्ट, वीजा जैसे दस्तावेजों का अभाव है तो भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। नागरिकता संशोधन कानून ऐसे लोगों को भारतीय नागरिकता का अधिकार देता है लेकिन इसके लिए भारत में एक से लेकर 6 साल तक की रिहाइश अनिवार्य है। भारत में अन्य लोगों के लिए भारतीय नागरिकता हासिल करने के लिए अभी 11 साल भारत में रहना कानूनी रूप से अनिवार्य है।
 
प्रश्न 5- क्या इसका मतलब यह माना जाये कि इन 3 देशों के मुसलमानों को भारतीय नागरिकता कभी नहीं मिल सकती है ?
 
उत्तर- इस प्रश्न का जवाब है कि यह तीन देश ही क्यों, अन्य देशों के मुसलमान भी कभी भी भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं यदि वो पात्र हैं। एक बात सभी को स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए कि नागरिकता संशोधन कानून ने किसी भी देश के किसी भी विदेशी को भारत की नागरिकता लेने से नहीं रोका है बशर्ते कि वह भारतीय कानून के तहत मौजूदा सभी योग्यताओं को पूरा करे। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि नरेंद्र मोदी के शासन की ही बात कर लें तो पिछले छह वर्षों के दौरान लगभग 2830 पाकिस्तानी नागरिकों, 912 अफगानी नागरिकों और 172 बांग्लादेशी नागरिकों को भारतीय नागरिकता दी गई है। इनमें से कई लोग इन तीन देशों में बहुसंख्यक समुदाय यानि मुस्लिम वर्ग से हैं। विदेशियों को भारतीय नागरिकता प्राप्त होती रही है और यह जारी रहेगी बस सभी अनिवार्य शर्तों को पूरा करना होगा। यहाँ हम आपको वह आंकड़ा भी बताना चाहेंगे कि नरेंद्र मोदी के भारत का प्रधानमंत्री बनने के बाद 2014 में जब बांग्लादेश के साथ सीमा समझौता किया गया था तो बांग्लादेश के पचास से अधिक हिस्सों को भारतीय क्षेत्र में शामिल किया गया और वहां के बहुसंख्यक समुदाय यानि मुस्लिम वर्ग के लगभग 14,864 बांग्लादेशी नागरिकों को भारतीय नागरिकता प्रदान की गई थी।
 
प्रश्न 6- क्या पाकिस्तान में बलूचियों, अहमदिया और म्यांमार में रोहिंग्याओं को इस कानून के अंतर्गत रियायत नहीं दी जानी चाहिए ?
 
उत्तर- दी जानी चाहिए। बिलकुल दी जानी चाहिए। बलूच, अहमदिया और रोहिंग्या कभी भी भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं बशर्ते वो नागरिकता अधिनियम-1955 से संबंधित वर्गों में प्रदत्त योग्यता को पूरा करें। एक बार फिर आपको समझा रहे हैं कि नागरिकता अधिनियम-1955 के तहत नागरिकता संशोधन कानून किसी भी देश के किसी भी नागरिक को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने से नहीं रोकता है। 

प्रश्न 7– कुछ लोगों का सवाल है कि क्या शरणार्थियों की देखभाल के लिए ‘संयुक्त राष्ट्र’ के तहत भारत का दायित्व नहीं बनता है ?
 
उत्तर- शरणार्थियों की देखभाल का दायित्व भारत का बनता है जनाब। भारत तो आजाद होने से पहले से शरणार्थियों की देखभाल करने का शानदार रिकॉर्ड रखता है। नागरिकता संशोधन कानून के तहत किसी भी शरणार्थी को बाहर नहीं भेजा जायेगा। अभी का आंकड़ा आपको बताएं तो भारत में दो लाख से अधिक श्रीलंकाई तमिल और तिब्बती और पंद्रह हजार से अधिक अफगानी, 20-25 हजार रोहिंग्या और विदेशों से सैंकड़ों अन्य शरणार्थी वर्तमान में रह रहे हैं। भारत को यह उम्मीद है कि जब कभी इन देशों की स्थिति सुधरेगी और हालात अनुकूल पाएंगे तो यह शरणार्थी अपने-अपने देशों को लौट जाएंगे। अभी इन शरणार्थियों को हर प्रकार की सुविधा दी जा रही है और इनके मानवाधिकारों की चिंता की जा रही है। लेकिन यहां एक बात और बताना चाहेंगे कि नागरिकता संशोधन कानून के तहत जिन तीन देशों के अल्पसंख्यकों की बात की गयी है उन देशों के बारे में भारत सरकार का आकलन यह है कि वहां अल्पसंख्यकों की स्थिति में कोई सुधार नहीं आने वाला है इसलिए उनकी चिंता करते हुए उन्हें भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है।
 
प्रश्न 8– तमिलनाडु के कुछ साथी पूछ रहे हैं कि भैया श्रीलंका के तमिलों का क्या होगा ?
 
उत्तरः आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 1964 और 1971 में प्रधानमंत्री स्तरीय करार के बाद भारत ने चार लाख 61 हज़ार तमिलों को भारतीय नागरिकता प्रदान की है। इस समय 95 हज़ार तमिल लोग तमिलनाडु में रह रहे हैं और केंद्र और राज्य से सुविधाएं प्राप्त कर रहे हैं। ये लोग अपनी पात्रता पूर्ण होते ही भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। इसलिए श्रीलंकाई तमिलों की आड़ में भारतीय नागरिकता संशोधन कानून की आलोचना करना सही नहीं है।
 
प्रश्न 9- क्या नागरिकता संशोधन कानून में नस्ल, लिंग, राजनीतिक अथवा सामाजिक संगठन का हिस्सा होने, भाषा व जातीयता के आधार पर होने वाले भेदभाव से पीड़ित लोगों को भी संरक्षण देने का प्रस्ताव है?
 
उत्तर- नहीं। नागरिकता कानून सिर्फ भारत के तीन करीबी देशों- जिनका अपना राजधर्म है, के छह अल्पसंख्यक समुदायों की सहायता करने के उद्देश्य से लाया गया है।
 
प्रश्न-10. क्या नागरिकता संशोधन कानून के बाद एनआरसी आयेगा और मुस्लिमों को छोड़कर सभी प्रवासियों को नागरिकता देगा ?
 
उत्तर- नागरिकता संशोधन कानून का एनआरसी से कोई संबंध नहीं है।
 
प्रश्न 11- क्या नागरिकता संशोधन कानून धीरे-धीरे भारतीय मुस्लिमों को भारत की नागरिकता से बाहर कर देगा?
 
उत्तर- नहीं, नागरिकता संशोधन कानून किसी भी भारतीय नागरिक पर किसी भी तरह से लागू नहीं होगा।
 
प्रश्न 12- क्या पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अलावा अन्य देशों में धार्मिक आधार पर भेदभाव का सामना कर रहे हिंदू भी नागरिकता कानून के अंतर्गत नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं?
 
उत्तर- नहीं। उन्हें भारत की नागरिकता लेने के लिए सामान्य प्रक्रिया से गुजरना होगा। इसके लिए उन्हें या तो पंजीकरण करवाना होगा अथवा नागरिकता हासिल करने के लिए आवश्यक समय भारत में गुजारना होगा। नागरिकता कानून लागू होने के बाद भी द सिटिजनशिप एक्ट, 1955 के तहत कोई प्राथमिकता नहीं दी जायेगी।
 
तो इस प्रकार...हमने नागरिकता संशोधन कानून पर सभी प्रमुख प्रश्नों के उत्तर आपके समक्ष रख दिये हैं। जरूरत है कि इन्हें समझिये ना कि हिंसक आंदोलनों का हिस्सा बनिये। आपको खुद से प्रश्न पूछना चाहिए कि कहीं अनजाने में आप भारत जैसे शांतिप्रिय देश और दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था को पीछे धकेलने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा तो नहीं बन रहे हैं।

Tuesday, 17 December 2019

वर्तमान में जैन धर्म की प्रासंगिकता

आज के “Logical World” में जैन धर्म हर चीज़ की लॉजिक सहित व्याख्या करता है।कहते है कि पूरा संसार नियमो से चलता है। मनुष्य जगत के भी अपने नियम होते है। यहां तक कि प्रकृति के कण कण में भी अपने नियम है। धर्म क्या है? शायद ही कोई व्यक्ति इसे परिभाषित कर पाए पर अंत में सब इस बात पर सहमत है कि असली धर्म वही है जो मनुष्य को मनुष्य होने का अहसास कराए, धर्म सिर्फ जीने की कला नही सीखता, बल्कि मरने की कला भी सिखाता है। जीवन का अर्थ केवल प्राण धारण करना नही है, सिर्फ सांस लेना नही है, बल्कि किस तरीके से जीवन को जीना है इसी का मार्ग हमे धर्म सीखता है।
जैन धर्म अपने आप मे अद्भुत है, क्योंकि ये विश्व का एक ऐसा धर्म है जो विज्ञान को अपने साथ देता है, या यूं कहें आज के “Logical World” में जैन धर्म हर चीज़ की लॉजिक सहित व्याख्या करता है। महावीर ने जीने के उपाय बताए वे जैन जीवनशैली के महत्वपूर्ण अंग है। महावीर का पहला सूत्र था- हमारे जीवन मे घृणा का कोई स्थान नही होना चाहिए। इसका अर्थ है कि एक आदमी दूसरे आदमी के साथ समानता का व्यवहार करें। आज संसार मे सबसे बड़ा दुख है कि मनुष्य अपने अलावा दुसरो की भूल रहा है, आगे बढ़ने के चक्कर मे वो दुसरो को धक्का देने से नही कतराता। यदि हम स्वस्थ जीवन जीना चाहते है तो सबसे पहले घृणा को त्यागे।
जैन जीवनशैली का दूसरा सूत्र है- शांतवृति। जीवन मे आवेश न हो, उतेजना न हो। जैसे को तैसे की भावना न हो। प्रारम्भ से ही बच्चे में ऐसे संस्कार निर्मित हो जिससे कि शांतिपूर्ण जीवन जीने के सुख का रहस्य वो समझ जाएं। आज समस्या ये है कि लोग छोटी छोटी बातों में आवेश में आ कर न सिर्फ अपना बल्कि अपने परिवार का जीवन भी कष्टमय बना देते है। जैन धर्म सिखाता है कि मन की शांति को जीवन मे कैसे उतारे। हमारी जीवनशैली ऐसी हो, जिसमें हमे कर्तव्यों का भान हो, पर आवेश का भूत सिर पर सवार न हो। शांतवृति का प्रयोग जैन जीवनशैली का महत्वपूर्ण सूत्र है। इसको व्यवहारिक रूप में अमल में लाने वाला व्यक्ति कभी दुखी नही रहता। अगर घर मे शांति हो तो उन्नति अपने आप होगी, बच्चे संस्कारवान होंगे, कलहपूर्ण वातावरण में बच्चे के कोमल मन मे जो घाव पनपते है वो जीवन पर्यंत नही भरते। एक जैन व्यक्ति सोचता है कि पानी छाने बिना नही पीना है, एक चींटी भी मर जाये तो उसका दिल कांप उठता है, उसी समाज मे ये हरकते सोच जताने वाली है, वजह ये है हमने धर्म के मर्म को पहचानना छोड़ दिया है, पाखण्ड औऱ धर्म के वास्तविक रूप में अंतर करना जरूरी है। जैन जीवनशैली का तीसरा रूप है- श्रममय जीवन जीना, श्रमयुक्त जीवन जीना। गांधीजी ने श्रम स्वावलंबन को व्रत के रूप में स्वीकार क़िया। प्रश्न है कि इसका मूलस्रोत कहाँ है? इसका मूलस्रोत है श्रमण परंपरा। भगवान महावीर ने स्वावलंबन पर बहुत बल दिया। उत्तराध्ययन सूत्र में स्वावलंबन से होने वाली उपलब्धियों का वर्णन है। श्रम और स्वावलंबन जैन धर्म के मुलसूत्र है। जिस व्यक्ति के जीवन मे श्रम और स्वावलंबन नही होता क्या वो वास्तव में आत्म कर्तव्य के सिद्धान्त को सही अर्थ में स्वीकार करता है?
जैन दर्शन का सिद्धान्त है- आत्मा ही सुख दुख की कर्ता है। इस संदर्भ में दूसरे का श्रम लेने की बात कहां तक तर्कसंगत है? दूसरे का शोषण करने की बात कहां फलित होती है? जो व्यक्ति स्वावलंबन का विकास करेगा, वह दूसरे के श्रम का शोषण नही करेगा। ज्यादा काम लेना और उसके बदले कम पारिश्रमिक देना शोषण ही तो है। जो जैन धर्म का श्रावक है उसका यह कर्तव्य बनता है कि वो किसी के श्रम का अनादर न करे, किसी के श्रम का मज़ाक न उड़ाए ये बात हमारा जैन श्रावक समझ ले तो शायद उसका जैन होना सफल हो जाएं। हमेशा न्यायोचित तरीके से अर्थ का अर्जन करे, गलत तरीके से अर्जित किया धन कभी व्यक्ति के पास नही ठहरता।वास्तव में देखा जाए आज जैन धर्म की प्रासंगिकता आज सबसे ज्यादा है। अगर हमे अपनी आने वाली पीढ़ी को एक अच्छा जीवन प्रदान करना है तो बचपन से ही उनमें ये संस्कार डाले। जैन धर्म अब सिर्फ धर्म न रहे बल्कि एक आदत बने। विनाश के कगार पर खड़ी ये धरती चीख चीख के आह्वान कर रही है मुझे बचा लो….तो आगे आइये उसकी सहायता कीजिये। अपनाइये जैन धर्म के सार को, अपनाइये जैन जीवनशैली को। जो आत्मिक सुख का आभास आपको होगा, वो शायद लाखो करोड़ो की सुख सुविधाओं से भी नही मिलेगा।

Saturday, 16 November 2019

सुरत शहर मे प्रदूषण से दम घुटने की समस्या भयावह सरकार कदम उठाए

उत्तम जैन (विद्रोही ) संपादक - विद्रोही आवाज 
आज ही सुबह जब समाचार पत्र मे एक खबर पर नजर पड़ी  दम घुटने की समस्या लेकर चार जगह से एक ही दिन मे आए 60 मरीज पांडेसरा , भेस्तान , लिम्बायत व उधना मे इतना प्रदूषण की लोग बीमार हो रहे है !   विज्ञान के इस युग में मानव को जहां कुछ वरदान मिले है, वहां कुछ अभिशाप भी मिले हैं।प्रदूषण एक ऐसा अभिशाप हैं जो विज्ञान की कोख में से जन्मा हैं और जिसे सहने के लिए अधिकांश जनता मजबूर हैं।प्रदूषण का अर्थ है -प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना। न शुद्ध वायु मिलना, न शुद्ध जल मिलना, न शुद्ध खाद्य मिलना, न शांत वातावरण मिलना। 

सूरत जेसे शहर  में यह प्रदूषण अधिक फैला है। वहां चौबीसों घंटे कारखानों का धुआं, मोटर-वाहनों का काला धुआं इस तरह फैल गया है कि स्वस्थ वायु में सांस लेना दूभर हो गया है। सूरत  की महिलाएं धोए हुए वस्त्र छत से उतारने जाती है तो उन पर काले-काले कण जमे हुए पाती है। ये कण सांस के साथ मनुष्य के फेफड़ों में चले जाते हैं और असाध्य रोगों को जन्म देते हैं! यह समस्या वहां अधिक होती हैं जहां सघन आबादी होती है, वृक्षों का अभाव होता है और वातावरण तंग होता है।सूरत शहर मे प्रदूषण इस कदर बढ़ गया है लोगो को आंखो मे जलन के साथ श्वास लेना मुश्किल हो रहा है ! आज सुबह 6 बजे सुबह टहलने निकला स्वयम ने अनुभव किया आंखो मे जलन व खांसी गले मे जलन के साथ महसूस हो रही है ! इस प्रदूषण से फेफड़े खराब होने व श्वास नली मे इन्फेक्शन होने का खतरा बढ़ेगा अस्थमा ,टीबी, ह्रदय रोग ज्यादा होने की आशंका प्रबल है समय रहते महानगर पालिका , राज्य सरकार व गुजरात पोल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ध्यान देने की जरूरत है अन्यथा इसके परिणाम घातक आने की संभावना है ! जीआईडीसी जो शहर से जुड़ी हुई है उसे जल्दी ही हटाकर दूसरी जगह स्थानांतरित किया जाना चाहिए या इस पर ध्यान देना चाहिए की प्रदूषण पर केसे नियंत्रण किया जा सके अन्यथा आगे आने वाले 3 से 5 वर्षो मे सूरत शहर की स्थिति उसके परिणाम भयावह होंगे जहा हर घर हर परिवार को इसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ेगा विशेष कर मासूम बच्चे इस जहर से प्रभावित होंगे !            

Friday, 15 November 2019

इश्क के बाद होंसला एक कहानी

ट्रैन के ए.सी. कम्पार्टमेंट में मेरे सामने की सीट पर बैठी लड़की ने मुझसे पूछा " हैलो, क्या आपके पास इस मोबाइल की पिन है??"

उसने अपने बैग से एक फोन निकाला था, और नया सिम कार्ड उसमें डालना चाहती थी। लेकिन सिम स्लॉट खोलने के लिए पिन की जरूरत पड़ती है जो उसके पास नहीं थी। मैंने हाँ में गर्दन हिलाई और सीट के नीचे से अपना बैग निकालकर उसके टूल बॉक्स से पिन ढूंढकर लड़की को दे दी। लड़की ने थैंक्स कहते हुए पिन ले ली और सिम डालकर पिन मुझे वापिस कर दी।

थोड़ी देर बाद वो फिर से इधर उधर ताकने लगी, मुझसे रहा नहीं गया.. मैंने पूछ लिया "कोई परेशानी??"

वो बोली सिम स्टार्ट नहीं हो रही है, मैंने मोबाइल मांगा, उसने दिया। मैंने उसे कहा कि सिम अभी एक्टिवेट नहीं हुई है, थोड़ी देर में हो जाएगी। और एक्टिव होने के बाद आईडी वेरिफिकेशन होगा उसके बाद आप इसे इस्तेमाल कर सकेंगी।

लड़की ने पूछा, आईडी वेरिफिकेशन क्यों??

मैंने कहा " आजकल सिम वेरिफिकेशन के बाद एक्टिव होती है, जिस नाम से ये सिम उठाई गई है उसका ब्यौरा पूछा जाएगा बता देना"

लड़की बुदबुदाई "ओह्ह "

मैंने दिलासा देते हुए कहा "इसमे कोई परेशानी की कोई बात नहीं"

वो अपने एक हाथ से दूसरा हाथ दबाती रही, मानो किसी परेशानी में हो। मैंने फिर विन्रमता से कहा "आपको कहीं कॉल करना हो तो मेरा मोबाइल इस्तेमाल कर लीजिए"

लड़की ने कहा "जी फिलहाल नहीं, थैंक्स, लेकिन ये सिम किस नाम से खरीदी गई है मुझे नहीं पता"

मैंने कहा "एक बार एक्टिव होने दीजिए, जिसने आपको सिम दी है उसी के नाम की होगी"

उसने कहा "ओके, कोशिस करते हैं"

मैंने पूछा "आपका स्टेशन कहाँ है??"

लड़की ने कहा "दिल्ली"

और आप?? लड़की ने मुझसे पूछा

मैंने कहा "दिल्ली ही जा रहा हूँ, एक दिन का काम है, आप दिल्ली में रहती हैं या...?"

लड़की बोली "नहीं नहीं, दिल्ली में कोई काम नहीं ना मेरा घर है वहाँ"

तो? मैंने उत्सुकता वश पूछा

वो बोली "दरअसल ये दूसरी ट्रेन है, जिसमे आज मैं हूँ, और दिल्ली से तीसरी गाड़ी पकड़नी है, फिर हमेशा के लिए आज़ाद"

आज़ाद?? लेकिन किस तरह की कैद से?? मुझे फिर जिज्ञासा हुई किस कैद में थी ये कमसिन अल्हड़ सी लड़की..

लड़की बोली, उसी कैद में थी जिसमें हर लड़की होती है। जहाँ घरवाले कहे शादी कर लो, जब जैसा कहे वैसा करो। मैं घर से भाग चुकी हुँ..

मुझे ताज्जुब हुआ मगर अपने ताज्जुब को छुपाते हुए मैंने हंसते हुए पूछा "अकेली भाग रही हैं आप? आपके साथ कोई नजर नहीं आ रहा? "

वो बोली "अकेली नहीं, साथ में है कोई"

कौन? मेरे प्रश्न खत्म नहीं हो रहे थे

दिल्ली से एक और ट्रेन पकड़ूँगी, फिर अगले स्टेशन पर वो मिलेगा, और उसके बाद हम किसी को नहीं मिलेंगे..

ओह्ह, तो ये प्यार का मामला है।

उसने कहा "जी"

मैंने उसे बताया कि 'मैंने भी लव मैरिज की है।'

ये बात सुनकर वो खुश हुई, बोली "वाओ, कैसे कब?" लव मैरिज की बात सुनकर वो मुझसे बात करने में रुचि लेने लगी

मैंने कहा "कब कैसे कहाँ? वो मैं बाद में बताऊंगा पहले आप बताओ आपके घर में कौन कौन है?

उसने होशियारी बरतते हुए कहा " वो मैं आपको क्यों बताऊं? मेरे घर में कोई भी हो सकता है, मेरे पापा माँ भाई बहन, या हो सकता है भाई ना हो सिर्फ बहने हो, या ये भी हो सकता है कि बहने ना हो और 2-4 मुस्टंडे भाई हो"

मतलब मैं आपका नाम भी नहीं पूछ सकता "मैंने काउंटर मारा"

वो बोली, 'कुछ भी नाम हो सकता है मेरा, टीना, मीना, शबीना, अंजली कुछ भी'

बहुत बातूनी लड़की थी वो.. थोड़ी इधर उधर की बातें करने के बाद उसने मुझे ट्रॉफी दी जैसे छोटे बच्चे देते हैं क्लास में, बोली आज मेरा बर्थडे है।

मैंने उसकी हथेली से ट्रॉफी उठाते बधाई दी और पूछा "कितने साल की हुई हो?"

वो बोली "18"

"मतलब भागकर शादी करने की कानूनी उम्र हो गई आपकी" मैंने काउंटर किया

वो "हंसी"

कुछ ही देर में काफी फ्रैंक हो चुके थे हम दोनों। जैसे बहुत पहले से जानते हो एक दूसरे को..

मैंने उसे बताया कि "मेरी उम्र 28 साल है, यानि 10 साल बड़ा हुँ"

उसने चुटकी लेते हुए कहा "लग भी रहे हो"

मैं मुस्कुरा दिया

मैंने उसे पूछा "तुम घर से भागकर आई हो, तुम्हारे चेहरे पर चिंता के निशान जरा भी नहीं है, इतनी बेफिक्री मैंने पहली बार देखी"

खुद की तारीफ सूनकर वो खुश हुई, बोली "मुझे उसने(प्रेमी ने) पहले से ही समझा दिया था कि जब घर से निकलो तो बिल्कुल बिंदास रहना, घरवालों के बारे में बिल्कुल मत सोचना, बिल्कुल अपना मूड खराब मत करना, सिर्फ मेरे और हम दोनों के बारे में सोचना और मैं वही कर रही हूँ"

मैंने फिर चुटकी ली, कहा "उसने तुम्हे मुझ जैसे अनजान मुसाफिरों से दूर रहने की सलाह नहीं दी?"

उसने हंसकर जवाब दिया "नहीं, शायद वो भूल गया होगा ये बताना"

मैंने उसके प्रेमी की तारीफ करते हुए कहा " वैसे तुम्हारा बॉय फ्रेंड काफी टेलेंटेड है, उसने किस तरह से तुम्हे अकेले घर से रवाना किया, नई सिम और मोबाइल दिया, तीन ट्रेन बदलवाई.. ताकि कोई ट्रेक ना कर सके, वेरी टेलेंटेड पर्सन"

लड़की ने हामी भरी,बोली " बोली बहुत टेलेंटेड है वो, उसके जैसा कोई नहीं"

मैंने उसे बताया कि "मेरी शादी को 5 साल हुए हैं, एक बेटी है 2 साल की, ये देखो उसकी तस्वीर"

मेरे फोन पर बच्ची की तस्वीर देखकर उसके मुंह से निकल गया "सो क्यूट"

मैंने उसे बताया कि "ये जब पैदा हुई, तब मैं कुवैत में था, एक पेट्रो कम्पनी में बहुत अच्छी जॉब थी मेरी, बहुत अच्छी सेलेरी थी.. फिर कुछ महीनों बाद मैंने वो जॉब छोड़ दी, और अपने ही कस्बे में काम करने लगा।"

लड़की ने पूछा जॉब क्यों छोड़ी??

मैंने कहा "बच्ची को पहली बार गोद में उठाया तो ऐसा लगा जैसे जन्नत मेरे हाथों में है, 30 दिन की छुट्टी पर घर आया था, वापस जाना था लेकिन जा ना सका। इधर बच्ची का बचपन खर्च होता रहे उधर मैं पूरी दुनिया कमा लूं, तब भी घाटे का सौदा है। मेरी दो टके की नौकरी, बचपन उसका लाखों का.."

उसने पूछा "क्या बीवी बच्चों को साथ नहीं ले जा सकते थे वहाँ?"

मैंने कहा "काफी टेक्निकल मामलों से गुजरकर एक लंबी अवधि के बाद रख सकते हैं, उस वक्त ये मुमकिन नहीं था.. मुझे दोनों में से एक को चुनना था, आलीशान रहन सहन के साथ नौकरी या परिवार.. मैंने परिवार चुना अपनी बेटी को बड़ा होते देखने के लिए। मैं कुवैत वापस गया था, लेकिन अपना इस्तीफा देकर लौट आया।"

लड़की ने कहा "वेरी इम्प्रेसिव"

मैं मुस्कुराकर खिड़की की तरफ देखने लगा

लड़की ने पूछा "अच्छा आपने तो लव मैरिज की थी न,फिर आप भागकर कहाँ गए?? कैसे रहे और कैसे गुजरा वो वक्त??

उसके हर सवाल और हर बात में मुझे महसूस हो रहा था कि ये लड़की लकड़पन के शिखर पर है, बिल्कुल नासमझ और मासूम।

मैंने उसे बताया कि हमने भागकर शादी नहीं की, और ये भी है कि उसके पापा ने मुझे पहली नजर में सख्ती से रिजेक्ट कर दिया था।"

उन्होंने आपको रिजेक्ट क्यों किया?? लड़की ने पूछा

मैंने कहा "रिजेक्ट करने की कुछ भी वजूहात हो सकती है, मेरी जाति, मेरा धर्म, मेरा कुल कबीला घर परिवार नस्ल या नक्षत्र..इन्ही में से कोई काट होती है जिसके इस्तेमाल से जुड़ते हुए रिश्तों की डोर को काटा जा सकता है"

"बिल्कुल सही", लड़की ने सहमति दर्ज कराई और आगे पूछा "फिर आपने क्या किया?"

मैंने कहा "मैंने कुछ नहीं किया,उसके पिता ने रिजेक्ट कर दिया वहीं से मैंने अपने बारे में अलग से सोचना शुरू कर दिया था। खुशबू ने मुझे कहा कि भाग चलते हैं, मेरी वाइफ का नाम खुशबू है..मैंने दो टूक मना कर दिया। वो दो दिन तक लगातार जोर देती रही, कि भाग चलते हैं। मैं मना करता रहा.. मैंने उसे समझाया कि "भागने वाले जोड़े में लड़के की इज़्ज़त वकार पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता, जबकि लड़की का पूरा कुल धुल जाता है। फिल्मों में नायक ही होता है जो अपनी प्रेमिका को भगा ले जाए और वास्तविक जीवन में भी प्रेमिका को भगाकर शादी करने वाला नायक ही माना जाता है। लड़की भगाने वाले लड़के के दोस्तों में उस लड़के का दर्जा बुलन्द हो जाता है, भगाने वाला लड़का हीरो माना जाता है लेकिन इसके विपरीत जो लड़की प्रेमी संग भाग रही है वो कुल्टा कहलाती है, मुहल्ले के लड़के उसे चालू ठीकरा कहते हैं। बुराइयों के तमाम शब्दकोष लड़की के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं। भागने वाली लड़की आगे चलकर 60 साल की वृद्धा भी हो जाएगी तब भी जवानी में किये उस कांड का कलंक उसके माथे पर से नहीं मिटता। मैं मानता हूँ कि लड़का लड़की को तौलने का ये दोहरा मापदंड गलत है, लेकिन है तो सही.. ये नजरिया गलत है मगर अस्तित्व में है, लोगों के अवचेतन में भागने वाली लड़की की भद्दी तस्वीर होती है। मैं तुम्हारी पीठ को छलनी करके सुखी नहीं रह सकता, तुम्हारे माँ बाप को दुखी करके अपनी ख्वाहिशें पूरी नहीं कर सकता।"

वो अपने नीचे का होंठ दांतो तले पीसने लगी, उसने पानी की बोतल का ढक्कन खोलकर एक घूंट अंदर सरकाया।

मैंने कहा अगर मैं उस दिन उसे भगा ले जाता तो उसकी माँ तो शायद कई दिनों तक पानी भी ना पीती। इसलिए मेरी हिम्मत ना हुई कि ऐसा काम करूँ.. मैं जिससे प्रेम करूँ उसके माँ बाप मेरे माँ बाप के समान ही है। चाहे शादी ना हो, तो ना हो।

कुछ पल के लिए वो सोच में पड़ गई , लेकिन मेरे बारे में और अधिक जानना चाहती थी, उसने पूछा "फिर आपकी शादी कैसे हुई???

मैंने बताया कि " खुशबू की सगाई कहीं और कर दी गई थी। धीरे धीरे सबकुछ नॉर्मल होने लगा था। खुशबू और उसके मंगेतर की बातें भी होने लगी थी फोन पर, लेकिन जैसे जैसे शादी नजदीक आने लगी, उन लोगों की डिमांड बढ़ने लगी"

डिमांड मतलब 'लड़की ने पूछा'

डिमांड का एक ही मतलब होता है, दहेज की डिमांड। परिवार में सबको सोने से बने तोहफे दो, दूल्हे को लग्जरी कार चाहिए, सास और ननद को नेकलेस दो वगैरह वगैरह, बोले हमारे यहाँ रीत है। लड़का भी इस रीत की अदायगी का पक्षधर था। वो सगाई मैंने येन केन प्रकरेण तुड़वा डाली.. फिर किसी तरह घरवालों को समझा बुझा कर मैं फ्रंट पर आ गया और हमारी शादी हो गई। ये सब किस्मत की बात थी..

लड़की बोली "चलो अच्छा हुआ आप मिल गए, वरना वो गलत लोगों में फंस जाती"

मैंने कहा "जरूरी नहीं कि माँ पापा का फैसला हमेशा सही हो, और ये भी जरूरी नहीं कि प्रेमी जोड़े की पसन्द सही हो.. दोनों में से कोई भी गलत या सही हो सकता है.. नुक्ते की बात यहाँ ये है कि कौन ज्यादा फरमाबरदार और वफादार है।"

लड़की ने फिर से पानी का घूंट लिया और मैंने भी.. लड़की ने तर्क दिया कि "हमारा फैसला गलत हो जाए तो कोई बात नहीं, उन्हें ग्लानि नहीं होनी चाहिए"

मैंने कहा "फैसला ऐसा हो जो दोनों का हो, औलाद और माता पिता दोनों की सहमति, वो सबसे सही है। बुरा मत मानना मैं कहना चाहूंगा कि तुम्हारा फैसला तुम दोनों का है, जिसमे तुम्हारे पेरेंट्स शामिल नहीं है, ना ही तुम्हे इश्क का असली मतलब पता है अभी"

उसने पूछा "क्या है इश्क़ का सही अर्थ?"

मैंने कहा "तुम इश्क में हो, तुम अपना सबकुछ छोड़कर चली आई ये इश्क़ है, तुमने अक़्ल का दखल नहीं दिया ये इश्क है, नफा नुकसान नहीं सोचा ये इश्क है...तुम्हारा दिमाग़ दुनियादारी के फितूर से बिल्कुल खाली था, उस खाली स्पेस में इश्क इनस्टॉल कर दिया गया। जिसने इश्क को इनस्टॉल किया वो इश्क में नहीं है.. यानि तुम जिसके साथ जा रही हो वो इश्क में नहीं, बल्कि होशियारी हीरोगिरी में है। जो इश्क में होता है वो इतनी प्लानिंग नहीं कर पाता है, तीन ट्रेनें नहीं बदलवा पाता है, उसका दिमाग इतना काम ही नहीं कर पाता.. कोई कहे मैं आशिक हुँ, और वो शातिर भी हो ये नामुमकिन है। मजनू इश्क में पागल हो गया था, लोग पत्थर मारते थे उसे, इश्क में उसकी पहचान तक मिट गई। उसे दुनिया मजून के नाम से जानती है जबकि उसका असली नाम कैस था जो नहीं इस्तेमाल किया जाता। वो शातिर होता तो कैस से मजनू ना बन पाता। फरहाद ने शीरीं के लिए पहाड़ों को खोदकर नहर निकाल डाली थी और उसी नहर में उसका लहू बहा था, वो इश्क़ था। इश्क़ में कोई फकीर हो गया, कोई जोगी हो गया, किसी मांझी ने पहाड़ तोड़कर रास्ता निकाल लिया..किसी ने अतिरिक्त दिमाग़ नहीं लगाया.. लालच हिर्स और हासिल करने का नाम इश्क़ नहीं है.. इश्क समर्पण करने को कहते हैं जिसमें इंसान सबसे पहले खुद का समर्पण करता है, जैसे तुमने किया, लेकिन तुम्हारा समर्पण हासिल करने के लिए था, यानि तुम्हारे इश्क में हिर्स की मिलावट हो गई । डॉ इकबाल का शेर है
"अक़्ल अय्यार है सौ भेष बदल लेती है
इश्क बेचारा ना मुल्ला है, ना ज़ाहिद, ना हकीम"

लकड़ी अचानक से खो सी गई.. उसकी खिलख़िलाहट और लपड़ापन एकदम से खमोशी में बदल गया.. मुझे लगा मैं कुछ ज्यादा बोल गया, फिर भी मैंने जारी रखा, मैंने कहा " प्यार तुम्हारे पापा तुमसे करते हैं, कुछ दिनों बाद उनका वजन आधा हो जाएगा, तुम्हारी माँ कई दिनों तक खाना नहीं खाएगी ना पानी पियेगी.. जबकि आपको अपने प्रेमी को आजमा कर देख लेना था, ना तो उसकी सेहत पर फर्क पड़ता, ना दिमाग़ पर, वो अक्लमंद है, अपने लिए अच्छा सोच लेता। आजकल गली मोहल्ले के हर तीसरे लौंडे लपाडे को जो इश्क हो जाता है, वो इश्क नहीं है, वो सिनेमा जैसा कुछ है। एक तरह की स्टंटबाजी, डेरिंग, अलग कुछ करने का फितूर..और कुछ नहीं।

लड़की का चेहरे का रंग बदल गया, ऐसा लग रहा था वो अब यहाँ नहीं है, उसका दिमाग़ किसी अतीत में टहलने निकल गया है। मैं अपने फोन को स्क्रॉल करने लगा.. लेकिन मन की इंद्री उसकी तरफ थी।

थोड़ी ही देर में उसका और मेरा स्टेशन आ गया.. बात कहाँ से निकली थी और कहाँ पहुँच गई.. उसके मोबाइल पर मैसेज टोन बजी, देखा, सिम एक्टिवेट हो चुकी थी.. उसने चुपचाप बैग में से आगे का टिकट निकाला और फाड़ दिया.. मुझे कहा एक कॉल करना है, मैंने मोबाइल दिया.. उसने नम्बर डायल करके कहा "सोरी पापा, और सिसक सिसक कर रोने लगी, सामने से पापा फोन पर बेटी को संभालने की कोशिश करने लगे.. उसने कहा पापा आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए मैं घर आ रही हूँ..दोनों तरफ से भावनाओ का सागर उमड़ पड़ा"

हम ट्रेन से उतरे, उसने फिर से पिन मांगी, मैंने पिन दी.. उसने मोबाइल से सिम निकालकर तोड़ दी और पिन मुझे वापस कर दी

लोकतन्त्र खतरे मे - उत्तम जैन ( विद्रोही )


लेखक -उत्तम विद्रोही 
भारत जैसे देश में राजनीति शायद हर क्षेत्र में कामयाबी और रातोंरात अमीर बनने की कुंजी बन गई है. यही वजह है कि हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा की तर्ज पर राजनीतिज्ञों की जमात लगातार लंबी होती जा रही है.मौजूदा हालात में कोई भी राजनीतिक दल भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है. वह चाहे कांग्रेस के नेता, मंत्री और सांसद हों या फिर भाजपा या दूसरे राजनीतिक दलों के. भारत जैसे देश में यह आम धारणा बन गई है कि एक बार सांसद बन जाने पर कम से कम सात पुश्तों के खाने-पीने का इंतजाम हो जाता है. इसलिए इसमें कोई हैरत नहीं होनी चाहिए कि चुनाव आयोग की तमाम पाबंदियों और चुनावी आचार संहिता के बावजूद लोकसभा और राज्यसभा चुनावों में करोड़ों का खेल होता है. तमाम लोग इस भ्रष्टाचार के सभी पहलुओं से अवगत होने के बावजूद चुप्पी साधे बैठे हैं. असली राजनीतिक भ्रष्टाचार की शुरूआत तो यहीं से होती है. तमाम दलों पर मोटे पैसे के एवज में टिकट बेचने के आरोप भी अब आम हो गए हैं. अब जो व्यक्ति पहले मोटी रकम देकर टिकट खरीदेगा और फिर करोड़ों की रकम फूंक कर चुनाव जीतेगा, वह सत्ता में पहुंच कर तो अपनी रकम तो सूद समेत वसूल करने का प्रयास करेगा ही तमाम दलों में ऐसे नेता भरे पड़े हैं जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार और अपराध के दर्जनों मामले लंबित हैं. कार्यपालिका की बात छोड़ दें तो अब न्यायपालिका के दामन पर भी भ्रष्टाचार के धब्बे नजर आने लगे हैं. इस आरोप में अब तक विभिन्न अदालतों के कई जज भी बर्खास्त किए जा चुके हैं.राजनीति और भ्रष्टाचार के इस रिश्ते को खत्म करने के लिए चुनाव संबंधी कानूनों में संशोधन जरूरी है ताकि आपराधिक मामलों वाले लोग चुनाव ही नहीं लड़ सकें.  जिस देश के प्रधानमंत्री से लेकर उसके कई मंत्रियों पर रिलायंस और अडानी से लेकर विभिन्न औद्योगिक घरानों को फायदा पहुंचाने के आरोप लगते रहे हों, वहां नीरा राडिया जैसे सैकड़ों मामले अभी परदे के पीछे छिपे हो सकते हैं. इस मामले में अंकुश लगाने के लिए चुनाव आयोग और संभवतः सुप्रीम कोर्ट को भी पहल करनी पड़ सकती है. हमारे राजनेता तो कम से इस मामले में पहल करने से रहे