Wednesday 20 June 2018

जीवन जीने की कला है योग - योग स्वयं की स्वयं के माध्यम से स्वयं तक पहुँचने की यात्रा है- उत्तम जैन ( विद्रोही )

मित्रो व योगप्रेमी मित्रो 
 आज की तेज रफ्तार जिंदगी में अनेक ऐसे पल हैं जो हमारी स्पीड पर ब्रेक लगा देते हैं। हमारे आस-पास ऐसे अनेक कारण विद्यमान हैं जो तनाव, थकान तथा चिड़चिड़ाहट को जन्म देते हैं, जिससे हमारी जिंदगी अस्त-व्यस्त हो जाती है। ऐसे में जिंदगी को स्वस्थ तथा ऊर्जावान बनाये रखने के लिये योग एक ऐसी रामबाण दवा है जो, माइंड को कूल तथा बॉडी को फिट रखता है। योग से जीवन की गति को एक संगीतमय रफ्तार मिल जाती है। योग हमारी भारतीय संस्कृति की प्राचीनतम पहचान है। संसार की प्रथम पुस्तक ऋग्वेद में कई स्थानों पर यौगिक क्रियाओं के विषय में उल्लेख मिलता है। भगवान शंकर के बाद वैदिक ऋषि-मुनियों से ही योग का प्रारम्भ माना जाता है। बाद में कृष्ण, महावीर और बुद्ध ने इसे अपनी तरह से विस्तार दिया। इसके पश्चात पतंजली ने इसे सुव्यवस्थित रूप दिया।
पतंजली योग दर्शन के अनुसार –  योगश्चित्तवृत्त निरोधः
अर्थात् चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है।
योग धर्म, आस्था और अंधविश्वास से परे एक सीधा विज्ञान है… जीवन जीने की एक कला है योग। योग शब्द के दो अर्थ हैं और दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। पहला है- जोड़ और दूसरा है समाधि। जब तक हम स्वयं से नहीं जुड़ते, समाधि तक पहुँचना कठिन होगा अर्थात जीवन में सफलता की समाधि पर परचम लहराने के लिये तन, मन और आत्मा का स्वस्थ होना अति आवश्यक है और ये मार्ग और भी सुगम हो सकता है, यदि हम योग को अपने जीवन का हिस्सा बना लें। योग विश्वास करना नहीं सिखाता और न ही संदेह करना और विश्वास तथा संदेह के बीच की अवस्था संशय के तो योग बिलकुल ही खिलाफ है। योग कहता है कि आपमें जानने की क्षमता है, इसका उपयोग करो।
अनेक सकारात्मक ऊर्जा लिये योग का गीता में भी विशेष स्थान है--
सिद्दध्यसिद्दध्यो समोभूत्वा समत्वंयोग उच्चते
अर्थात् दुःख-सुख, लाभ-अलाभ, शत्रु-मित्र, शीत और उष्ण आदि द्वन्दों में सर्वत्र समभाव रखना योग है। प्राचीन जीवन पद्धति लिये योग, आज के परिवेश में हमारे जीवन को स्वस्थ और खुशहाल बना सकते हैं। आज के प्रदूषित वातावरण में योग एक ऐसी औषधि है जिसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है, बल्कि योग के अनेक आसन जैसे कि, शवासन हाई ब्लड प्रेशर को सामान्य करता है, जीवन के लिये संजीवनी है कपालभाति प्राणायामभ्रामरी प्राणायाम मन को शांत करता है, वक्रासन हमें अनेक बीमारियों से बचाता है।
आज कंप्यूटर की दुनिया में दिनभर उसके सामने बैठ-बैठे काम करने से अनेक लोगों को कमर दर्द एवं गर्दन दर्द की शिकायत एक आम बात हो गई है, ऐसे में शलभासन तथा तङासन हमें दर्द निवारक दवा से मुक्ति दिलाता है। पवनमुक्तासन अपने नाम के अनुरूप पेट से गैस की समस्या को दूर करता है।
भारतीय परम्परा में योग विद्या की अवधारणा कोई आज की बात नहीं है। भारत में वैदिक काल से ही योग विद्या को स्वास्थ्य जीवन शैली के लिए जरूरी उपकरण के तौर पर स्वीकार किया जाता रहा है। इसमें तो कोई शक नहीं कि हमारा इतिहास दर्शन इस बात की पुष्टि करता है कि प्राचीन काल से ही भारत अपने तमाम विद्याओं एवं पद्धतियों की वजह से विश्वगुरु के रूप में ख्याति प्राप्त रहा है। योग विद्या भी उन्हीं में से एक है। हालांकि समयचक्र के परिवर्तन एवं कालखंडों में हुए फेर ने ऐसे तमाम भारतीय परम्परागत जीवन पद्धति के उपकरणों को हाशिये पर लाकर छोड़ दिया, जो किसी जमाने में हमारे जीवन का अहम हिस्सा हुआ करते थे। तीन वर्ष पूर्व संयुक्त राष्ट्र ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस प्रस्ताव को 177 देशों के समर्थन से अनुमति दी थी, जिसमे मोदी ने योग को वैश्विक स्तर पर लाने और अमल करने की बात कही थी। गौरतलब है कि 2014 के अपने अमेरिकी दौरे के दौरान ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 27 सितम्बर को संयुक्त राष्ट्र के समक्ष एक प्रस्ताव पेश किया था, जिसमें कहा गया था कि संयुक्त राष्ट्र योग को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में लाने के लिए विचार करे।
प्रधानमंत्री मोदी के प्रस्ताव पर अमल करते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 3 महीने के भीतर ही 21 जून को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने का निर्णय कर लिया। इसे प्रधानमंत्री मोदी की मुहिम की सफलता के तौर पर एवं भारत के लिए एक बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा गया। हाशिये पर पड़े इस वैदिक आरोग्य संस्कार की पद्धति को प्रधानमंत्री मोदी ने पुन: वैश्विक मंच पर मजबूती से स्थापित किया है। योग को स्वीकार करने वाले सैकड़ों देशों में, उत्तरी अमेरिका के 23 देश, दक्षिणी अमेरिका के 11 देश, यूरोप के 42 देश, एशिया के 40 देश, अफ्रीका के 46 देश एवं अन्य 12 देश शामिल हैं। योग को अन्तरराष्ट्रीय मान्यता के तौर पर स्थापित होने के साथ-साथ वैश्विक इतिहास में दो रोचक घटनाएं भी हुईं। संयुक्त राष्ट्र में यह रेकॉर्ड दर्ज हुआ है कि पहली बार कोई प्रस्ताव इतने बड़े बहुमत और इतने कम समय में पारित हुआ है। इस रेकॉर्ड के मायने यही बयां करते हैं कि भारत के प्रधानमंत्री मोदी के इस प्रस्ताव पर दुनिया वाकई गंभीर थी और उसी गंभीरता की परिणिति थी कि 21 जून को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में चिह्नित किया जा सका। हालांकि जब अन्तरराष्ट्रीय योग दिस्वस के तौर पर जब पहला 21 जून नजदीक आ रहा था और दुनिया के 177 देश अपनी स्वीकारोक्ति को अमली जामा पहनाने चुके थे, ऐसे में भारत उनके लिए योग का आदर्श देश बना
बेशक योग को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा दे दी गई हो एवं दुनिया के सैकड़ों देश इसे अपना चुके हों, लेकिन भारत में ही इसको लेकर विरोध आदि के स्वर बेजा उठाए जाते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि जो व्यक्ति अनुशासित योग प्रक्रिया का जीवन में अनुकरण करता है, उसे सदैव स्वस्थ रहने का सुख प्राप्त होता है। वैश्विक स्वास्थ्य एवं विदेश नीति के तहत प्रस्तावित किए गए इस अजेंडे में भी मूलतया यही बात कही गई थी कि योग मानव जरूरत की तमाम ऊर्जाओं का स्रोत साधन है। 21 जून को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने सम्बन्धी इस घोषणा में संयुक्त राष्ट्र द्वारा यह भी कहा गया था कि योग को पूरी दुनिया में फैलाना एवं स्थापित करना जरूरी है।
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )  

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