जैन विद्या के आकर्षण मे केसे बंधे भावी पीढ़ी
लेखक – उत्तम जैन (
विद्रोही ) संपादक – विद्रोही आवाज
जैन
विद्या ज्ञान का अथाह सागर है क्योंकि
इसके द्वारा जीवन का सार, सृष्टि के सकल जीवों की विस्तृत जानकारी
सहित अन्य महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। जैन विद्या मे अनुशासन का बड़ा
महत्व है बांध बनाकर एकत्रित किया गया, और नहरों के
कूल-किनारों में अनुशासित करके बहाया गया वह पानी जिस तरह रेगिस्तान को भी हरा—भरा कर देता है। परन्तु जब कभी वही पानी बाढ़ का
प्रकोप बनकर, एकदम अनियन्त्रित होकर लक्ष्य—विहिन और दिशा विहिन प्रवाहित होने लगता है तब
उसी जल से प्रलय का दृश्य उपस्थित हो जाता है। चारों ओर विनाश ही विनाश दिखाई देने
लगता है। नियन्त्रण
के अभाव में किया गया विकास प्रगति समृद्धि का कारण न होकर विनाश का कारण बन जाता
है। जीवन के सारे स्वप्न उसमें विलीन हो जाते हैं। अनुशासित शिक्षा वह जल का
प्रवाह है जो शक्ति संपन्न होता है। परन्तु उस शक्ति का उपयोग यदि अनुशासन के साथ
होगा तो वह सृजन का कारण होगा और यदि लक्ष्य विहीन होकर अनियंत्रित ढंग से बहता है
तो वही विनाश का कारण भी बन सकता है। अपने आप पर नियंत्रण करना ही सबसे बड़ा
अनुशासन है—अपने आप
पर नियंत्रण किये बिना इन्द्रिय संयम नहीं होता और इंन्द्रिय संयम के बिना जीव
स्वयं की स्वाधीनता मुक्ति को प्राप्त नहीं कर सकते !
बस ऐसे ही आज अनुशासन विहिन शिक्षा की स्थिति है। इस अनुशासन मे हमारी देश व
समाज की भावी पीढ़ी आधुनिकता की चकाचोंध मे धूमिल न हो जाए हमारे समाज व देश की
भावी पीढ़ी को अनुशासन मे रहने की शिक्षा की जरूरत है ओर यह शिक्षा जैन विद्या मे
प्राप्त हो सकती है ! अनुशासन बहुत ही जरूरी है। अश्व को लगाम, हाथी को अंकुश, ऊँट को नकील और साइकिल के
लिए ब्रेक जरूरी है। ब्रेक है तो सुरक्षा, नहीं तो एक्सीडेन्ट । लगाम है तो हार्सपावर (अश्व) नियंत्रित अन्यथा
अनियन्त्रित। अंकुश है तो हाथी राह पर नहीं तो उन्मत्त स्वच्छन्द। सच ही तो कहा है
कि ब्रेक है तो कार नहीं तो बेकार। ऐसी स्थिति में जीवन की गाड़ी का क्या होगा ? यह हर परिवार को समझ कर
अपने भावी पीढ़ी को जैन विद्या के प्रति जागरूक करना चाहिए माता पिता स्वयं जैन
विद्या के प्रति जागरूक रहेंगे तो उनकी भावी पीढ़ी उनका अनुसरण करेगी तभी जैन
विद्या के प्रति उनका आकर्षण होगा उनमे संस्कार निर्माण होगा आचार्य श्री तुलसी ने
एक नारा दिया मुझे ज्ञात है उस समय छोटे छोटे गांवो मे दीवारों पर खूब लिखा जाता
था निज पर शासन फिर अनुशासन गुरुदेव आचार्य तुलसी की दुरद्रष्टि ही थी उनकी भावी
पीढ़ी के प्रति चिंता ही थी की संस्कार व
अनुशासन से अगर भावी पीढ़ी भ्रमित हो गयी
तो हमारे समाज का अस्तित्व खतरे मे आ जाएगा ओर जैन विद्या का मूल सारांश ही यही है
अहिंसा अनुशासन ओर संस्कार जिसे हमारी भावी पीढ़ी को देने है हमारे परिवार व समाज
का दायित्व है हमारी भावी पीढ़ी को जैन विद्या के गहन अध्ययन की ओर प्रेरित करे
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